________________
(५१) शय्या संथाराकि आमंत्रण करके वेहारावेंगे और आपकि बहुत सेवा भक्ति करेगे तो फिर आपको प्रदेशी रानासे क्या करना है हे भगवान आपके पधारनेपर बहुत ही उपकार होगा कारण यहांके लोग बडे ही भद्रीक प्रकृतिवाले हैं वास्ते आवश्य पधारों ऐसी आग्नेपूर्वक विनतिको श्रवण करते हुवे भगवान केशीश्रमणने फरमाया कि हे चित्त अवसर जाना जायगा । इतना केहेनेपर प्रधानजीको उमेद हो गइ कि गुरु महाराज मावश्य पधारेंगे। - चित्तप्रधान सावत्थीसे रवाना होके श्वेताम्बिका पाते ही पहला वनपालकके पासे. जाके केह दीया कि स्वल्पही कालमे यहा ‘पर पार्श्वनाथ संतानीये केशीश्रमण पधारेगे उन्होंकों मकान पाट 'पाटला आदिक सत्कार पूर्व देना और अच्छी तरहेसे सेवा भक्ति करना जब महात्मा यहा पर विराजमान होजावे तब तुम हमारे पास भाके हमको खबर दे देना इत्यादि ।
चित्त प्रधान अपने स्थानपर आके रस्तेका श्रम दुर कर राजा प्रदेशीके पास जाके नम्रतापूर्व भेटणा देके सर्व समाचारोंसे राजाकों संतुष्ट काँगा
.. . . यहां केशीश्रमण भगवान अपने शिष्य मंडलसे विहार
करते २ श्वेताम्विका नगरी पधार गये । वनपालकने महात्मावौकों देखतों ही बडा ही आदर सत्कारसे वन्दन नमस्कार करके उतरबेन स्थान और पाटपाटलादिसे मक्ति करके फिर नगरमे जहा चित प्रधान रहेते थे वहां आके हर्ष वदनसे वधाइ देताहुवा की है प्रधानजी जिन महा पुरुषोंकि आप रहा. देख रहे थे वेही भगवान