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केशीश्रमण मगवान मधुर स्वरसे बोले कि । हे महाभाग्य । अगर आपकी इच्छा हो तो म्है आपसे कुछ प्रश्न पूछना चाहाता हूं?
गौतमस्वामि विनयपूर्वक बोले कि-हे भगवान । मेरे पर अनुग्रह करावे अर्थात् मापकि इच्छा हो वह प्रश्न पूछनेकी कृपा करे।.. : _ (१) केशीश्रमण भगवानने प्रश्न किया कि हे गौतम । पाचप्रभु और वीरभगवान दोनोंने एक ही मोक्षके लिये यह धर्म रस्ता (दीक्षा) बतलाते हुवे पार्श्वप्रभु च्यार म्हाव्रत रूपी धर्म और वीरभगवान पांच महाव्रतरूपी धर्म वतलाया है तो क्या इस्मे आपको आश्चर्य नहीं होता हैं।
(उ०) गौतम स्वामि नम्रता पूर्वक बोलते हुवो कि हे भगवान् । पहेला तीर्थकर श्री आदिनाथ भगवान्के मुनि सरल (माया रहीत) थे किन्तु पहेले न देखनेसे मुनियों का आचार व्यवहारको समझना ही दुष्कर था परन्तु प्रज्ञावान् होनेसे समझनेके बाद आचारमें प्रवृति करना बहुत ही सहेन था और चरम तीर्थकर वीरभगवान्के मुनि प्रथम तो जडवत् होनेसे समझना ही दुष्कर और वक्र होनेसे समझे हुवेकों भी पालन करना अति दुष्कर है वास्ते इन्ही दोनों भगवा
के मुनियोंके लिये पांच महाव्रतरूपी धर्म कहा है और शेष २१ तीर्थकरोंके मुनि प्रज्ञावान होनेसे अच्छी तरहसे समझ भी सकते है
और सरल होनेसे परिपूर्णाचारकों पालन भी कर सकते थे वास्तें इन्ही २१ भगवान्के मुनियों के लिये च्यार महावत रूपी धर्म कहा है। पांच महाव्रत केहनेसे स्त्रि चोथ व्रतमें और परिग्रह धन धान्यादि
चमें व्रतमें गीना है परन्तु प्रज्ञावान्त समझ सकते है कि जब