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________________ (३५) रुपी धर्म और पांचों वर्णके वस्त्र वह भी अपरिमित तथा स्वल्प या बहु मूल्यके भी रक्षशक्ते हैं और भगवान वीर प्रभुके संतानों के जांच महात्रतरूपी धर्म तथा मात्र श्वेतवर्ण के वस्त्र वह भि परिमीत परिमाण और स्वल्प मूल्यके रखते हैं इस शंकाका समाधानके लिये अपने अपने गुरु महारानके पास आके निवेदन किया-भगवान गौतमम्वामिने पार्श्वनाथजीके संतानकोजष्ट (बड़े) समझके आप अपने शिप्यमंडलको साथ लेके आप तंदुक बनमें आने लगे कि जहां पर के शीश्रमण भगवान विरानते थे। ____ उन्ही समय बहुतसे अन्यमति लोक भी एकत्र हो गये कि आज जैनोंके आपसमें क्या चर्चा होगा और इन्ही दोनोंके अन्दर सच्चा कौन है । मनुष्य तो क्या परन्तु आकाशमें गमन करये हूये विद्याधर और देवता भी अदृष्टरूपसे आकाशमें चर्चा सुननेकों उपस्थित हो गये। ____ इदर भगवान गौतनस्वामिकों आते हुवे देखके केशीश्नमण भगवान अपने शिप्यमंडलका लेके सामने गये और बड़ेही आदर सत्कारसे अपने स्थानपर ले आये और पंच प्रकारके तृणोंका मासन गौतमस्वामिकों बेठनेके लिये तैयार किया तत्पश्चित् केशीश्रमण और गौतमस्वामि दोनों महाऋषि एक ही तक्खतपर विराजमान हूवे, जेसे आकाशके अन्दर सूर्य और चन्द्र शोभनिक होते हैं इसी माफीक केशीगौतम शोभने लगे। सभा चतुर्विधसंघ, देवता, विद्याधर, और अन्यमति लोकोंसे चकारबन्ध भराई गई थी और लोक राह देख रहे थे कि अब क्या चर्चा होगा । वह एक चित्तसे ही सुनना चाहिये ।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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