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________________ . (१५) (उ) तेनस कार्मण शरीर जीवोंक अनादिकालसे साथ ही लगे हुवे हैं और मोक्ष जाते समये ही इन्होंका त्याग होते हैं वास्ते तेजप्स कार्मण शरीरका त्याग करनेसे सिद्ध मतिश्यको प्राप्त करते हूवे लोकके अग्र भाग पर जाके विराजमान होनाते है अर्थात् अशरीरी होजाते है। ___ (३९) प्रश्न-शिष्यादिकि साहिताका त्याग करनेसे क्या फल होता है ? (उ०) साहिता लेना (इच्छा) यह एक कमजोरी ही है वास्ते साहिताका त्याग करनेसे जीव एकत्व पणाको प्राप्त करते है एकत्व होनेसे जीवको काम क्रोध कलेश शब्दादि नही होता है स्वसत्ता प्रगट हो जाती है इन्होंसे तप संयम संवर ज्ञान ध्यान समाधि आदिमें विघ्न नही होता है निर्विघ्नता पूर्वक आत्म कार्यको साधन कर शक्ता है। (१०) प्रश्न-भात्त पाणी (संथारा) का त्याग करनेसे क्या फल होता है ? (उ०) आलोचना करके समाधि सहित भात पाणीका त्याग करनेसे जीवोंके जो अनादि कालसे च्यारों गतिमें परिभ्रमण करानेवाले भव थे उन्होंकि स्थितिका छेदन करते हुवे संसारका अन्तं कर देता है। (४१) प्रश्न-स्वभाव (अनादि कालसे अठारे पाप सेवनरूप प्रवृत्तिका त्याग करनेसे क्या फल होता है ? . (७०) स्वभावका त्याग करनेसे अठारे पॉपसे निवृत्ति हो माती है इन्होंसे जीवोंकों सर्व व्रतीरूप स्वपणतिमें रमणता होती
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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