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(१४) होनेसे शीतोष्ण कालमें किसी कीस्मकि तृष्णा नहीं रहेती है इन्होंसे आनन्द मगलसे संयम यात्रा निर्वाहा शक्ते है ।
(३५) प्रश्न-सदोष आहारपाणोका त्याग करनेसे क्या फल होता है ?
. (उ) सदोष आहारादिका त्याग करनेसे जिन्ही जीवोंके शरीरसे बाहार बनता था उन्ही जीवोंकी अनुकम्पाको स्वीकार करता हूवा अपने जीवनेकी आसाका परित्याग करते हुवे जो आहार संबन्धी कलेश था उन्होंसे भी निवृति होके सुख समाधीके अन्दर रमणता होती है।
(७६) प्रश्न-कषाय (क्रोधादि)का त्याग करनेसे क्या फल होता है ?
(उ) कषायका त्याग करनेसे जीव निकषाय अर्थात् वीतराग भावी होजाता है वीतरागी होनासे सुख और दुःखको सम्यक् प्रकारे जानता हूवा अकषाय स्थानपर पहुंच जाता है । - (३७) प्रश्न-योगों ( मन वचन कायके वैपार )का त्याग करनेसे क्या फल होता है ?
(उ) योगोंका त्याग करनेसे जीव अयोगावस्थाको स्वीकार करता है अयोगी होनेपर नवा कर्म नहीं बन्धते है चवदमें गुण. स्थान अयोगीगुणश्रेणीपर छडते हुवे पूर्व कर्मोकी निर्जरा करें शीघ्र ही मोक्षमें जाते है।
(३) प्रश्न-शरीर ( तेजस कार्मणादि)का त्याग करनेसें