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( १८ ) (९) तीन विकलेन्द्रियके (३) पर्याप्ता (३) अपर्याप्ता (१) स्तोक उर्वलोकमें ( २ ) उर्ध्वलोक, तिरछालोकमें
असं० गु० (३) तिरछालोकमें असं० गु० (४) अधोलोक, तिरछालोक
असं० गु० (५) अधोलोक सं० गु० (६) तिरछालोकमें सं० गु० (१०) पांच बोलोकी भल्पा० ।
समुचय पंचेन्द्रिय, पंचन्द्रियके अपर्याप्ता, समुचय त्रसकाय,
त्रसकायके पर्याप्ता, सकायके अपर्याप्ता, एवं ६ बोल (१) स्तोक तीनों लोकमें (२) उर्वलोक, तिरछालोक सं०गुरू (३) अधोलोक, तिरछालोकमें संख्यात गु० (४) उर्ध्वलोकमें संख्यात गु० (५) अधोलोकमें संख्यात गु०
(६) तिरछालोक असं० गु० (११) पुद्गलक्षेत्रापेक्षा
(२) स्तोक तीनों लोकमें (२)उर्वलोक, तिरछालोक अगु० (३) अधोलोक, तिरछालोक विशेषा (४) तिरछालोक
असं० गु० (५) उर्ध्वलोक प्रसं० गु० (६) अधोलोक विशेषा (१२) द्रव्यक्षेत्रापेक्षा
(१) स्तोक तीनों लोकमें (२) उर्ध्वलोक, तिरछालोक अगु० (३) अधोलोक, विरलालोक विशेषा (४) उर्ध्वलोक असं० गु० (१) अधोलोके अनंत गु० (६) तिरछालोकमें संख्यात गु.