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मान है बहुतसे देवता देवी विद्याधरादि आवे है पूर्व संचित मुभ फलकों भोगवते हवे विचरे है।
(२) नन्दनवन-भद्रशालवनकी संभूमिसें ५०० जोजन उंचा मेरुपर्वतपर जावे वहाँ गोल बलीयाकार नन्दनवन आवे वह पांचसो जो० विस्तारवाला है मेरूपर्वतको चौतर्फ वीटा हुवा है अर्थात् वहांपर मेरूपर्वतकी एक मेखला निकली हुइ है उन्होके उपर नन्दनवन है । वेदिकावन खंड च्यार जिनमन्दिर १६ वावी ४ प्रासाद शक्रेन्द्र इशानेन्द्रका पूर्वभद्र शालवनवत् समझना और नन्दनवनमें 8 कुंट है नन्दनवनकुंट, मेरुकुंट, निषेडकुंट, हेमवन्त रजीतकुं० रुचित सागरचित० बज्र० बलकुंट जिस्में आठ कुट पांचसो पांचसो जो० उंचा यावत् आठो कूटपर आठ देवीका भुवन है मेघकरा, मेघवती, सुमेघा, हेममालनिदेवी, सुवच्छादेवी, वच्छमित्रादेवी, बज्रसेनादेवी, बलहकादेवी, आठों देवीयोंकि स्थिति एक पल्योपमकी है राजधानी अपनी अपनी दिशा तर्फ अन्य जम्बुद्विपमें समझना। बलकुट १००० जो उंचा है मूलमें १००० मध्यमें ७५० उपरसें ५०० जो विस्तारवाला है तीनगुणी साधिक परद्धि है बलदेवता राजधानी अन्य जत्बुद्विपमें है शेषभद्रशालवनवत् यावत् अच्छा सुन्दर है । देवदेवी प्रानन्द करते है.