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सुन्दर रूप तथा मौतफल की मालावों से सुशोभित है मध्यभागमे पद्मवर वेदिका श्राजानेसे दो विभाग हो गये है (१) अन्दर का विभाग (२) बाहार का विभाग जो अन्दर का विभाग है उन्ही के अन्दर अनेक जातिके वृक्ष जानेसे अन्दरका वनखंड कहा जाते हैं उन्ही के अन्दर पांच वर्ण के तृण रत्नमय है पूर्वादि दिशीका मन्द वायु चलने के राग ३६ रागणी मन और श्रवणको आनन्दकारी ध्वनी निकलती है उन्ही वनखंड में और भी छोटी छोटी बाबी और पर्वत आय है वह अनेक आसन पडे है वहाँ व्यंतर देव और देवीयों आते है पूर्वकृत पुन्यकों सुखपूर्वक भोगते है इसक बाहारका बन भी समझना परन्तु वहा तृण नही है ।
मरू पर्वत के यारों दिशा पैतालीस पैतालीस हजार योजन जानेपर प्यारो दिशा उन्ही जगतिके अन्दर या दर वाजा आते है वह दरवाजा आठ योजनके उचे च्यार योजन के चोड है दरवाजा उपर नवभूमि और सुपेतगुमट मर ध्वजा और आठ आठ मंगलीक है। दरवाजा दोनों तर्फ दो दो चौतरा है उन्हीके उपर प्रासाद तोरण चन्दनके कलसे कारी थाल आदि यावत् धूपके कुडच्छ और मनोहर रूपवाली पुतलियोंसे सुशोभीत है.
(१) पूर्वदिश में विजय नामको दरवाजो है. (२) दक्षिण दिशमें विजयन्त नामको दर