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(१८) क्षेत्रवेदनाद्वार - प्रत्यक नरकमें क्षेत्रवेदना दश दश प्रकारकी है अनन्त क्षुधा, पीपासा, शीत, उष्ण, रोग. शोक, ज्वर, कुडाशपणे, कर्कशपणे, अनन्त पराधिनपणे यह वेदना हमेसो होती है पेहली नरकसे दुसरी नरकमें अनन्त गुणी वेदना है एवं यावत छठीसे सातमी नरक में अनन्त गुणी वेदना है अथवा नरक के नामानुस्वार भी नरकमें वेदना है जेसे रत्नप्रभा खरकरंड रत्नोंका है तथा वह वेदना बहूत है और शार्करप्रभा में जमीन के स्पर्श तरवारकी धारासे अनन्त गुण तीक्षण है वालुकाप्रभाकी रेती के माफीक जल रही है, पंकप्रभा रौद्रमेद चरatar किचमचा हुवा है धूमप्रभामें शोमनिवासे अनन्त गुण खारो धूम है, है. तमप्रभामें अन्धार तमतमाप्रभा में घोरोनघौर अन्धार है इत्यादि अनन्त वेदना नरक में हैं.
(१६) देवकृत वेदना - पेहली, दुसरी, तीसरी नरकमें परमाधामी देवता पूर्वभव कृत पापोंको उदेश २ के मरते हैं चोथी पांचमी नरक अगर वैमानि देवोका वैर हो तो वैर लेनेको जाके वैदना करते हैं छठी सातमी नारकीमें नारकी पापसमे ही वन माफीक मरते कटते है देवकृत वेदनावाला नरकसे आपसमें वेदनावाला नारकी असंख्यातगुणा है. (२०) वैक्रयद्वार - नारकी जो बैक्रय बनता है वह
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