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वहां च्यार गजविस्तार है वहां पर सनत्कुमार महेन्द्र देवलांक आता है,
सनत्कुमार महेन्द्र देवलोकसे पुण ०॥ गज उर्ध्व जावे तव पांचवा ब्रह्मदेवलोक आता है वह पांच गजका विस्तारवाला है।
पांचवा देवलोकसे पाय ०। राज उर्ध्व जाये तब छठा लंतक देवलोक आता है वह भी पांच राजके विम्तावाला है।
छठा देवलोकमे पाव ०) गज उर्च जाये तब मातवा महाशुक्र देवलोक आता है वह च्यार राजक विस्तारवाला है वहांसे पाव राज उर्ध्व जावे नव आठवा महम्र देवलोक च्यार गजके विस्तारवाला आता है ।
आठवा देवलोकसे श्रादा ॥ गज उर्ध्व जाता है तब नवमा दशवा देयलोक आता है वह तीन गजके विस्तारवाला है वहांसे आदा ०। राज उर्च जाता है तब इग्यारवा बारहवा देवलोक आता है वह अढाइ राजविस्तारवाला है।
इग्यारवा बारहवा देवलोकमे एक राज उर्व जाता है तब नव ग्रीवेग आता है जीम्मे ! राज तो ग्राढाइ गजका और || गज दो राजके विस्तारवाला है।
नव ग्रीवेगसे एक राज उर्व जाता है तब पांचाणुनः वमान पाता है जिसमें आदा : राज ता दोढ ।। गज और आदा !! राज एक राजविस्तारवाला है एवं मान राज उर्च लोक है जिम्के धनराजादि देवो यंत्रसे.