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तीर्थच पंचेन्द्रिय और मनुष्यके दोंनो प्रकारकी वेदना है। शेष २५ ison एक औपक्रमी वेदना है
द्वारम् |
(७) वेदना दो प्रकारकी है - निदा और अनिदा, नारकी १ भुवनपती १० व्यन्तर १ इन बारह दंडक में दोनों प्रकारकी वेदना है। कारण संज्ञी भूत ( जो यहांसे संज्ञी मरके गया है वह ) निदावेदना वेदे और असंज्ञी भूत ( असंज्ञी थरके गया: है वह ) अनिदा वेदना वेदे ।
पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय एक अनिदा वेदना वेदे कारण असंज्ञी है विर्यच पंनेन्द्री और मनुष्यमे दोनों प्रकारकी वेदना है। तथा ज्योतिषी वैमानिक में भी दोनो प्रकारकी वेदना है । कारण ये देवता दो प्रकार के होते है ।
(१) अमाई सम्यक दृष्टी - निदा वेदना वेदते हैं। (२) माई मिथ्यादृष्टीभ - निदावेदना वेदते हैं ।
सेवं भंते सेवं भते तमेव सच्चम् ।
थोकडा नंबर १७
श्री पन्नवणाजी सुत्र पद ३६ ( समुद्घात )
संसारी जीवोंके साथ अनादिकालसे पुद्गगलोंका संबन्ध है जो पुल जिस कार्यपणे परिणमते है उन्हीं पुद्गलोंको उसी नामसे पुद्गल बतलाये जाते हैं, जैसे कोइ पुद्गल वेदनिपणे परिणमे तथा कषाय पणे परिणमें तो इसी नाम ( वेदनी या कषाय ) से बतलाया जावे ।