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होनापर साधु मार्ग स्वकारकर समिति गुप्ती पांचमहावत चरण मतरी, करणसतरिके पालक हो उन्होंको संयति कहते है। वह मटा गुणस्थानसे चौदवा गु० तक मीलते है।
(२) असंयता-जिन्होंके व्रत पच्चरकाण कुछ भी न हो वह जीव पेहलेसे चौथा गुणस्थान तक मीलते है जिन्होंके तीन
(१) अनादि अनान्त अभव्यापेक्षा प्र० गु० (२) अनादि सान्त भव्यापेक्षा ,,
(३) सादि सान्त-पांचवेसे इग्यारवे गुणस्थान जाके पीछा पडे हुवे पेहलासे चौ०था गु० तक
(३) संयतासंयत-कुच्छ व्रत हों कुच्छ अव्रत न हो एसा जो पांचवे गुणस्थान व्रतते हुवे श्रावक लोक ।
(४) नोसंयति नोअसंयति नोसंयतासंयतासिद्धभागवान् ।
समुच्चय जीव संयति है असंयति है संयतासयत है नोसंयति नोअसंयति नोसंयतासंयत यह च्यारो प्रकारका है
नारकी देवता पाचस्थावर तीन वैकलेन्द्रिय असंज्ञी मनुष्य तीर्यच तथा युगल मनुष्य यह सर्व असंयति है कारण इन्होंके व्रत नही होते हैं।
संज्ञीतीर्यच पांचेन्द्रिय असंयति है तथा संयतासंयती भी हैं कारण तीर्यचोंको जातिस्मर्ण ज्ञान होनासे पूर्व भवमे जो व्रत लिया हो वह व्रत तीर्यचके भवमे भी पालण करते है वास्ते तीर्यचमे भी श्रवक मीलते है।