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[५४] केवलज्ञान होनेपर इन्द्रियों के उपयोगकी जरूरत नही है वह जीव १३-१४ गुणस्थान या सिद्धोंके जीवोंको नो संज्ञीनो असंज्ञी कहा जाता है।
समुचय जीव और मनुष्य तीनों प्रकारके होते हैं संज्ञ:असंज्ञी-नोसंज्ञी नोअसंज्ञी।
पांच स्थावर तीन वैकलेन्द्रिय समुत्सम तीर्यच पांचेन्द्रिय और मनुष्य यह सर्व असंज्ञी मन रहीत है।
पेहली नरक दशभुवनपति व्यंतरदेव और छप्पन अन्तर - द्विपोंका मनुष्य संज्ञी होता है परन्तु कितनेक जीव अपर्याप्ताव
स्थामें असंज्ञी भी पाया जाते है कारण यहांसे असंज्ञी तीर्यच मरके उक्त स्थानों में जाते हैं उन्हीकों अपर्याप्ती अवस्थामें शास्त्रकारोंने असंज्ञी गीना है इसापेक्षा। ___ . ज्योतीषी देव, वैमानिकदेव और संज्ञीतीयंच पांचेन्द्रि तथा तीस अकर्मभूमि युगल मनुष्य यह सर्व संज्ञी मनवाले है । सिद्ध भगवान् नोसंज्ञी नोअसंज्ञी है ।
सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।
थोकडा नम्बर १४ सूत्र श्री पनवणाजी पद ३२
(संयति पद) (१) संयति-जिन्होंके अन्तानुबन्धीचोक, अप्रत्याख्यानि चोक, प्रत्याख्यानीचोक, एवं १२ तथा मिथ्यात्वमोहनि, मिश्र मोहनि, सम्यक्त्वमोहनिय, एवं १५ प्रकृतियोंका क्षय या उपशम