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[३४] प्रत्येक दंडकके जीवोंमें कितने २ दर्शन है।
(१) सातोनरकमे पूर्वोक्त तीनो दर्शन है परन्तु सातवी नरकके उपर्याप्तामें एक मिथ्या दर्शन मोलता है।
(२) दश भुवनपतियोंमें पूर्वोक्त तीनों दर्शन है परन्तु पन्दरा परमाधामी देवोंमें एक मिथ्या दर्शन है।
(३) पांचस्थावर-पृथ्वीकाय अपूकाय तेउकाय वायुकाय बनास्पति काय इन्होंमें एक मिथ्या दर्शन है । .
(४) तीन वैकलेन्द्रिय वेरिन्द्रिय तेरिन्द्रिय चौरिन्द्रिय तथा असंज्ञी तीर्यच पांचेन्द्रिय-जलचर स्थलचर खेचर उनपुर भुजपुर इन्ही आठबोलोंके अपर्याप्ती अवस्थामें सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शन और पर्याप्तावस्थामें दर्शन एक मिथ्यादर्शन है।
(५) संज्ञी तीर्यच पांचेन्द्रियमें दर्शन तीन पूर्ववत् ।
(६) मनुष्य असंज्ञी मनुष्य तथा छपन्न अन्तरद्विपोंके मनुष्योंमें दर्शन एक मिथ्या दर्शन, और तीस अकर्म भूमि युगल मनुष्योंमें दर्शन दो (१) सम्यग्दर्शन (२) मिथ्यादर्शन शेष पन्दरा कर्म भूमि मनुष्योंमें तीनों दर्शन पूर्वोक्त पावे
(७) बाणमित्र और ज्योतीषी देवोंमें तीनों दर्शन पूर्ववत
(८) वैमानिक देवोंमें तीन, कलिषी देवोंमें दर्शन एक मिथ्या दर्शन, नौग्रीवैगके देवतोंमें दर्शन दो पावे (१) सम्यग्दर्शन (२) मिथ्यादर्शन और पांचाणुत्तर वैमानके देवों में दर्शन एक स० शेष वैमानिक देवोंमें दर्शन तीनों पावें। ।
उपर कये हूवे सर्वस्थानों के अपर्याप्ता जीवोंमें मिश्र दर्शन नहीं मीलता है कारन मिश्र दर्शन हमेंसों पर्याप्ती अवस्था में ही