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[३३] एवं १८ सूत्र होता है जिन्होंको पूर्वो क ८० के साथ गुणा करनेसे ३८४० भांगा होता है
६४८० कर्मभूमिका भांगा ३८४० अकर्म भूमिका सर्व गर्भके भांगा- १०३२०
सेवंभंते सेवंभंते तमेवसच्चम् ।
थोकडा नंबर ७ मूत्र श्रीपन्नवणाजी पद १९.
(दर्शन पद ) वस्तुको अवलोकन कर उन्हीपर श्रद्धा ( प्रतित ) करना उन्हीका नाम दर्शन है। दर्शनमें मौख्य हेतू भूत मोहनिय कर्म है । मोहनिय कर्मका मूलसे क्षय होजानेपर सम्यग्दर्शनकि प्रप्ती होती है उन्हीको क्षायक दर्शन भी केहते है तथा मोहनिय कर्मको उपशम करनेसे उपशम दर्शनकि प्राप्ती होती है इन्ही दोनों दर्शनोंकों सम्यग्दर्शन कहा जाते है तथा मोहनिय कर्मका प्रवलोदय होनेपर वस्तुकी विप्रीत श्रहना होती है उन्हीको मिथ्या दर्शन केहते हैं तथा मिश्र मोहनिय कर्मोदय वस्तुमें सत्यासत्यकी कल्पना होती है उन्हीकों मिश्र दर्शन केहते है अर्थात् ।
(१) सम्यग्दर्शन-वस्तुको यथार्थ श्रद्धना । (२) मिथ्या दर्शन-वस्तुको विप्रीत श्रद्धना ।
(३) मिश्र दर्शन वस्तुमे सत्यासत्यका विकल्प करना अर्थात् सत्य वस्तु होनेपर सत्यासत्यकि कल्पना या असत्य वस्तु होनेपर मि सत्यासत्यकि कल्पना करना ।