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( ९७ ) . (७) नावागति-जैसे पाणी में नावा (नौका) धीरे धीरे चाले
(८) नयगति-तत्त्व विचारमें नैगमादि ७ नय अर्थात् जिस नयकी अपेक्षासे बोले वह उन्ही नयकी गति कही जाती है
(९) छायागति-जैसे अश्व, गज, मनुष्य, किन्नरादि देव तथा वृषभ रथ छात्रादिकी छाया चाले अर्थात् इन्होंकी छायाकी गति.
(१०) छायाणुगति-जैसे पुरुष स्त्रि नोपुरुषकी छाया पीछे पीछे गति करे.
(११) लेस्सागति-जैसे कृष्णलेश्या निललेश्याके वर्ण रूप पणे परिणमे एवं नील कापोतपणे कापोत तेजो पणे यावत् पद्म शुक्ल पणे परिणमे इत्यादि. . (१२) लेस्साणुवायगति-जैसे मरती वखत जिस लेश्या का द्रव्य गृहन करता है उसी लेश्याके स्थानमें उत्पन्न होता है.
(१३) उद्दिस पविभत्तगति-जैसे प्राचार्य पद्वि, उपाध्याय पद्वि, स्थिवर पद्वि, प्रवृतक पद्वि, गणि पद्वि, गणधर पद्वि, गणविच्छेदक पद्वि, देवे और पद्वि प्रमाणे गति करे. (१४) चउपुरिसपविभतगति-जैसे चार पुरुष होते है
(१) साथमें निकले और साथमें प्रवेश हो. (२) साथमें निकले और विषम प्रदेश हौ.
(३) विषम निकले और साथमें प्रवेश हो. . (४) विषम निकले और विषम प्रवेश हो.