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४७ बोलोंकी बन्धी. (३५९) मिलता है पहिला, दूसरा और चौथा भांगा और बांधा. न बांधे बांधसी, इस तीसरे भांगों में पूर्वोक्त बारहा बोलों के जीव नहीं मिलते. क्योंकि यह भांगा वर्तमानकाल में वेदनीय कर्म न बांधे.
और फीर बांधेगा यह नहीं होसक्ता. कारण वेदनीय कर्म का बंध तेरवा गुणस्थानक के अंत समय तक होता है. ___अलेशी, अजोगी, में भांगो १ चौथो. बांधा, न बांधे, न बांधसी, शेष तेतीस बोलों में भांगा २ पहिला और दूसरा.
एवम् मनुष्य दंडक में भी भांगा ३ समुच्चयवत् समझ लेना शेष तेवीस दंडक में भांगा २ पहिला और दूसरा.
समुच्चय जीवोंकी अपेक्षा से आयुष्य कर्ममें. अलेशी, के वली और अयोगी, ये तीन बोलों के जीवोंमें केवल चौथा भांगा पावे.
कृष्णपक्ष में मांगा २ पहिला और तीसरा.
मिश्रदृष्टि, अवेदी और अकषायी में २ भांगा. तिसरा और चौथा, मन: पर्यव ज्ञानी, नोसंज्ञा में ३ भांगा. पहिले तीसरा और चौथा. शेष अडतीस बोलों के जीवों में चारों भांगा से आयुष्य कर्म बांधे, अब चोवीस दंडकों की अपेक्षा आयुष्य कर्म के बंध के भांगे कहते है नारकी के पूर्वोक्त ३५ बोलोमेंसे कृष्ण पक्षी और कृष्ण लेशी में भांगा दो पावे. पहिला और तीसरा. मिश्रदृष्टि में भांगा दो पावे तीसरा और चौथा. शेष बत्तीस योलों के जीव चारो भांगो से आगुष्य कर्म बांधे.
देवताओं में भुवनपति से यावत् बारहावे देवलोक तक के देवताओंमें पूर्वोक्त कहे हुए बोलोंमें से कृष्णपक्षी, ओर कृष्णलेशी (जहां पावे वहांतक) में दो भांगा पहिला और दूसरा मिश्रदृष्टिमें दो भांगा तीसरा और चौथा, शेष बोलों के जीवों में मांगा चारो पावे। नव ग्रैवेक के देवताओं में पूर्वोक्त ३२ बोलोंमें से कृष्णपक्षीमें