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________________ ( ३२०) शीघबोध भाग ५ बां. ऋषभ नाराच संघयण १४ नाराचसंघयण १५ अर्द्ध नाराच सं० १६ कीलिका सं० १७ न्यग्रोध संस्थान १८ सादि संस्थान १९ वामन सं० २० कुज सं० २१ नीचगोत्र २२ उद्योत नाम २३ अशुभविहायोगति २४ स्त्री वेद २५ मनुष्यायु २६ देवायुः २७ सत्ताईस प्रकृति छोडकर शेष ७४ का बंध होय. (४) अविरति सम्यकष्टि गुणस्थानक में मनुष्यायुष्य १ देवायुष्य २ तीर्थकर नाम कर्म ३ यह तीन प्रकृतियोंका बंध वि. शेष करे इस वास्ते ७७ प्रकृति का बंध होय. (५) देशविरति गुणस्थानक पूर्व ७७ प्रकृति कही उसमें से बज्रऋषभनाराचसंघयण १ मनुष्यायु २ मंनुप्यजाति ३ मनुध्यानुपूर्वी ४ अप्रत्याख्यानी क्रोध ५ मोन ६ माया ७ लोभ ८ औदारिक शरीर ९ ओदारिक अंगोपांग १० इन दश प्रकृतियों का अबंधक होने से शेष ६७ प्रकृति बांधे. (६) प्रमत्त मयत गुणस्थानक में प्रत्याख्यानी क्रोध मान २ माया ३ लोभ ४ का विच्छेद होनेसे शेष ६३ प्रकृति बांधे. (७) अप्रमत्त संयत गुणस्थानक में ५९ प्रकृतिका बंध है. पूर्व ६३ प्रकृति कही जिससे शोक १ अरति २ अस्थिर ३ अशुभ ४ अयश ५ असाता वेदनीय ६ इन छ: प्रकृतियों का बंध विच्छेद करे और आहारक शरीर १ आहारक अंगोपांग २ विशेष बांधे एवम् ५९ प्रकृतिका बंध करे. अगर देवायुष्य न बांधे तो ५८ प्रकृतिका बंध क्योंकि देवायुष्य छट्टे गुणस्थान कसे वांधता हुवा यहां आवे. परन्तु सातवें गुणस्थानकसे आयुष्यका बन्ध शुरु न करे. ८) निवृति बादर गुण स्थानक का सात भाग है जिसमें प. हिले भागमें पूर्ववत् ५८ का बंध. दजे भागमें निद्रा १ प्रचला २ का वध विच्छेद होनेसे ५६ का बंध हो. एवम् तीजे, चौथे, पांचव और
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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