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________________ कर्म अधिकार. (३१९) ( उत्तर ) जिस तरह शिव ( मोक्ष ) मंदिर पर चठने के लिये पावडिया ( सीढी ) है उसी तरह कर्म शत्रु को विदारने के लिये जीव के शुद्ध. शुद्धतर, शुद्धतम अध्यवसाय विशेष. यद्यपि अध्यवसाय असंख्याते है. परन्तु स्थूल याने व्यवहार नयसे १४ स्थान कहे है यथा मित्थ्यात्व १ सास्वादन २ मिश्र ३ अविरति सम्यकदृष्टि ४ देशविरति ५ प्रमत्त संयत ६ अप्रमत्त संयत ७ निवृति बादर ८ अनिवृत्ति बादर ९ सूक्ष्म संपराय १० उपशांत मोह वीतराग ११ क्षीणमोह वीतराग छद्मस्थ १२ सयोगी केवली १३ और अयोगी केवली १४ यह चवदे गुणस्थानक है पहिले वताई हुई १४८ प्रकृतियों में से वर्णादिक १६ पांच शरीरका बंधन ५ संघातन ५ और मिश्र मोहनीय! सम्यक्त्व मोहनीय १ एवम् २८ प्रकति कम करनेसे शेष १२० प्रकृतिका समुचय बंध है। (१) मिथ्यात्व गुणस्थानक में १२० प्रकृतियों में से तीर्थकर नामकर्म १ आहारक शरीर २ आहारक अंगोपांग ३ तीन प्रकृतियोंका बंध विच्छेद होनेसे बाकी ११७ प्रकृतियोंका बंध है. (२) सास्वादन गुणस्थानक मे नरक गति १ नरकायुष्य २ नरकानुपूर्षी ३ एकेन्द्रि ४ बेइन्द्री ५ तेइन्द्री ६ चौरिन्द्री ७ स्था.घर ८ सूक्ष्म ९ साधारण १० अपर्याप्ता ११ हुंढक संस्थान १२ आतप १३ छेवटुं संघयण १४ नपुंसक वेद १५ मिथ्यात्व मोहनीय १६ ये सोला प्रकृति का वंध विच्छेद होनेसे १०१ प्रकृति का बंध है. (३) मिश्र गुणस्थानको पूर्वकी १०१ प्रकृति में से घियचगति १ त्रिर्यचायुष्य २ त्रिर्यंचानुपूर्वी ३ निद्रा निद्रा ४ प्रचला प्रचला ५ थीणद्धी ६ दुर्भाग्य ७ दुःस्वर ८ अनादेय ९ अनंतातुंबन्धी क्रोध १० मांन ११ माया १२ लोभ १३
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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