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________________ कर्मोकि उत्तर प्रकृति. (३०३ ) पेतवर्ण, श्वेतवर्ण जीवोंके जिस वर्ण नाम कर्मोदय होते है वेसा वर्ण मीलता है। ( अ ) गन्ध नामकर्मकि दो प्रकृति है-सुर्भिगन्धनाम कर्मोदयसे सुर्भिगन्धके पुद्गल मीलते है दुर्मिगन्धनाम कर्मोदयसे दुर्भिगन्धके पुद्गल मीलते है। ( ट ) रस नामकर्मकि पांच प्रकृति है-पूर्ववत् शरीरके पुद्गल तिक्तरस, कटुकरस, कषायरस, अम्लरस, मधुररस, जैसे रस कर्मोदय होता है वेसे ही पुद्गल शरीरपणे ग्रहन करते है। (ठ) स्पर्श नामकर्मकि आठ प्रकृति हे जिस स्पर्श कर्मका उदय होता है वैसे स्पर्शके पुद्गलोंकों ग्रहन करते है जैसे कर्कश, मृदुल, गुरु, लघु, शित, उष्ण, स्निग्ध, रुक्ष । (ड) अनुपूर्वि नामकर्मकि च्यार प्रकृतियों है एक गतिसे मरके जीव दुसरी गतिमें जाता हुवा विग्रह गति करते समयानुपूर्वि, प्रकृति उदय हो जीवकों उत्पत्तिस्थान पर ले जाते है जैसे बेचा हुवा वहलकों धणी नाथ गालके लेजावे जीस्का च्यार भेद नरकानुपूर्वि, तीर्यचानुपूर्वि, मनुष्यानुपूर्वि, देवआनुपूर्वि । (ढ) विहायगति नामकर्म कि दो प्रकृतियों है जिस कर्मादयसे अच्छी गजगामिनी गति होती है उसे शुभ विहायगति कहते है और जिन कर्मोदयसे उंट खरवत् खराब गति होती है उसे अशुभ विहायगति कहते है । इन चौदा प्रकारकि प्रकृतियोंके पिंड प्रकृति कही जाती है अब प्रत्येक प्रकृति कहते है। पराघातनाम-जिस प्रकृतिके उदयसे कमजोरकों तो क्या परन्तु बडे बडे सत्वषाले योद्धोंको भी एक छीनको पराजय कर उश्वासनाम-शरीरकि बाहीरकि हयाको नासीकाहारा
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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