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शीघ्रबोध भाग ४ था. ( २९ ) गृहस्थ लोगोंकि वैयावञ्च करनेसे अनाचार , ( ३० ) अपनि जाति कुल बतलाके आजीविका करे तो , ( ३१ ) सचित्त पदार्थ जलहरी आदि भोगवे तो अना ,, (३२) शरीरमें रोगादि आनेसे गृहस्थोंकि सहायता लेनेसे;.
( ३३ ) मूलादि बनस्पति ( ३४ ) इक्षु ( ३५ ) कन्द ( ३६ ) मूल भोगवे तो अनाचार लागे.
( ३७ ) फल फूल (३८) बीजादि भोगवेतो अनाचार ,,
(३९) सचित्तनमक (४०) सिंधु देशका सिंधालुण (४१) सांबर देशका सांबरलुण (४२) धूल खाडिका लुण (४३) समुद्रका लुण (४४) कालानमक यह सर्व सचित्त भोगवे तो अनाचारलागे।
(४५) कपडोंको धूपादि पदार्थोंसे सुगन्ध बनानेसे अना० (४६) भोजन कर वमन करने से अनाचार , (४७) विगर कारण जुलाबादिका लेनासे अनाचार ,, (४८) गुंजस्थानको धोना समारनादि करनेसे अना० (४९) नेत्रों में सुरमा अञ्जन लगाके शोभनिक बनावे ,, (५०) दांतोंको अलतादिका रंग लगाके सुन्दर बनावे ,, (५१) शरीरको तैलादिसे उघटनादि कर सुन्दर बनानेसे,,
(५२) शरीरकि शुश्रूषा करना रोम नख समारणादि शोभा करनेसे.
उपर लिखे अनाचारको मदेव टालके निर्मल चारित्र पालनो चाहिये।
सेवं भंते सेवं भंते-तमेव सच्चम्.