SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनाचाराधिकार. (२७७) (६) देशस्नान सर्वस्नान करे तो अनाचार लागे । (७) सचित्त-अचित्त पदार्थों की सुगन्धी लेवे तो अना० . ८) पुष्पादिकी माला सेहरा पहेरे तो अनाचार ,, ९) पंखा वीजणासे वायु ले हवा खावे तो अना० (१०) तैल घृतादि आहारका संग्रह करे तो अना० (११) गृहस्थोंके बर्तनमें भोजन करे तो अना० ( १२ ) राजपिंड याने बलिष्ट आहार लेवे तो अना. (१३) दानशालाका आहारादि ग्रहन करे तो अना० : १४ । शरीरका विना कारण मर्दन करे तो अना० (१५) दांतोसे दांतण करे तो अनाचार लागे । (१६) गृहस्थोंको सुखशाता पुच्छे टैल बन्दगी करे तो,, (१७ ) अपने शरीरकों दर्पणादिमें शोभा निमित्त देखे तो, (१८) चोपाट सेतरंजादि रमत रमे तो अनाचार । (१९) अर्थोपार्जन करे तथा जवारमें सठा करे तो अना० ( २० ) शीतोष्णके कारण छत्र धारण करे तो अना० (२१) औषधि दवाइयों बतलाके आजीवीका करे तो अना० (२२) जुत्ते मोजे बुटादि पावोंमें पहरे तो अना० (२३) अग्निकायादि जीवोंके आरंभ करे तो अना० ( २४ ) गृहस्थोंके वहां गादीतकीयों आदि पर बैठनेसे ,, ( २५ ) गृहस्थोंके वहां पलंग मेज खाट पर बैठनेसे ,, (२६) जीसकी आज्ञासे मकान में ठेरे उनोंका आहार भोग बनेसे , । २७) विना कारण गृहस्थोंके वहां बेठना कथा कहनेले, २८) विगर कारण शरीरके पीठी मालीसादिका करनेसे,,
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy