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( २६६) शीघ्र बोधभाग ४ थो. मीले तो ज० १-२-३ उ. प्रत्येक हजार मीले, पूर्वपर्यायाधी नियमा प्रत्येक हजार क्रोड मीले. निग्रंथ वर्तमान पर्यायाश्री स्यात् मीले न मीले, अगर मीले तो ज० १-२-३ उ० १६२ मीले. पूर्वपर्यायाश्री स्यात् मीले न मीले. मीले तो ज०१-२-३ उ० प्रत्येक सो मीले. स्नातक वर्तमान पर्यायाश्री जघन्य १-२-३ उ० १०८ मीले पूर्वपर्यायाश्रा नियमा प्रत्येक क्रोड मीले. द्वारं..
(३६) अल्पाबहुत्व (.) सबसे थोडा. निग्रंथ नियंठाका जीव, (२) पुलाकवाले जीव संख्यातगुणे, ३) स्नातकके संख्यातगुणे, (४) पकुशके संख्यातगुणे, (५) पडिसेवणके संख्यातगुणे, (६) कषायकुशील नियंठाके जीव संख्यातगुणे. इति द्वारम।
॥ सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।।
- --- थोकडा नम्बर ३५.
सूत्र श्री भगवतीजी शतक २५ उद्देशा ७.
(संयति) संयति ! साधु ) पांच प्रकारके होते है. यथा सामायिक संयति, छदोपस्थापनिय संयति, परिहार विशुद्ध संयति, सूक्ष्म संपराय संयति, यथाख्यात संयति. इन पांचों संयतियोंके ३६ बारसे. विवरण कर शास्त्रकार बतलाते है।
(१) प्रज्ञापना द्वार-पांच संयतिकी प्ररूपणा करते है. (१) सामायिक संयतिके दो भेद है. (१) स्वल्प कालका जो प्रथम और चरम जिनोंके साधुवोंको होता है, उसकी मर्यादा जघन्य सात