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३६ बोल. ( २६५ ) १ समय उ० अन्तर मुहूर्त्त स्नातक एक जीवाश्रवी ज० अन्तर्मु• उ० देशोणा पूर्वकोड बहुत जीवो आश्रयी शाश्वता. द्वारं.
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(३०) आंतरा - पहले के पांच नियंठाके एक जीवाश्रयी ज० अन्तर्मु: उ० देशोणा अर्ध पुद्गलपरावर्तन. स्नातकका आंतरा नहीं. बहुत जीवो आश्रयी पुलाकका अंतरा ज० समय उ० संख्यात काल निग्रंथ ज० १ समय उ० छे मास शेष चार नियंठाका आंतरा नहीं.
(३१) समुद्घात + पुलाकमें समुद्घात, तीन वेदनी, कषाय और मरणन्ति, बुकशमें पांच वे० क० म० वैक्रिय और तेजस, कषायकुशील में ६ । केवली छोडके ) निग्रंथ में समुद्र नहीं है द्वारं.
( ३२ ) क्षेत्र - पहले के पांच नियंठा लोकके असंख्यात भागमें होवे, स्नातक लोकके असंख्यात में भागमें हो या बहोत से असंख्यात भागमें होवे या सर्व लोकमें होवे. द्वारं.
( ३३ ) स्पर्शना - जैसे क्षेत्र कहा वैसे ही स्पर्शना भी लमजना, स्नातककी अधिक स्पर्शना भी होती है. द्वारं.
(३४) भाव - पहले के ४ नियंठा क्षयोपशम भावमें होवे. निग्रंथ उपशम या क्षायिकभाव में होवे, स्नातक क्षायिकभाव में होवे. द्वारं.
(३५) परिमाण - पुलाक वर्तमान पर्यायआश्रयी स्यात् मीले स्यात् न भी मीले, मीले तो जघन्य १-२-३ उ० प्रत्येक सौ. पूर्व पर्यायश्री स्यात् मीले स्यात् न मीले अगर मीले तो ज० १-२-३ उ० प्रत्येक हजार मीले. बुकश वर्तमान पर्यायाश्री स्यात् मीले स्यात् न मीले. यदि मीले तो ज० १-२-३ उ० प्रत्येक सो. पूर्व पर्यायाश्री नियमा प्रत्येक सो क्रोड मीले. एवं पडिवणा, कषायकुशील वर्तमान पर्यायाश्री स्यात् मीले स्यात् न मीले. जो
+ वेदनी, कषाय, मरण, वैकिय, तेजस, आहारिक, केवली.