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नवतत्त्व.
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अन्तरद्विप बतलाते है यथा यह जम्बुद्विप एक लक्ष योजनके विस्तारवाला है इनोंकी परिधि ३१६२२७।३।१२८॥१३॥-१-१-६।५ इतनी है इनों के बाहार दो लक्ष योजनके विस्तारवाला लवण समुद्र है । जम्बुद्विपके अन्दर जो चूल हेमवन्त नामका पर्वत है उनोंके दोनों तर्फ लवणसमुद्रमें पूर्व पश्चिम दोनो तर्फ दाढके आकार टापुवोंकी लेन आ गई है वह जम्बुद्विपकि जगतीसे लव. णसमुद्रमे ३०० योजन जानेपर पहला द्विपा आता है वह तीनसो योजनके विस्तारवाला है उन द्विपसे लवणसमुद्र में ४०० योजन जानेपर दुसरा द्विपा आता है वह ४०० यीजनके विस्तारवाला है यहभी ध्यानमें रखना चाहिये कि यह दुसरा द्विपा जम्बुद्विपकी जगतीसेभी ४०० योजनका है । दुसरा द्विपासे लवणसम. द्रमें पांचसो योजन तथा जगतीसेभी पांचसो योजन जावे तब तीसरा द्विपा आता है वह पांचसो यौजनके विस्तारवाला है उन तीसरा द्विपासे छेसो ६०० योजन लवणसमुद्र में जावे तथा जगतीसेभी ६०० योजन जावे तब चोथा द्विपा आवे वह ६०० योजनके विस्तारवाला है उन चोया द्विपासे ७०० योजन लवण समुद्रमे जावे तथा जगतोसे भी ७०० योजन जावे तब पांचवा द्विपा सातसों योजनके विस्तारवाला आता है उन पांचवा छिपासे ८०० योजन तथा जगतीसे ८०० योजन लवणसमुद्र में जावे तब छठा द्विपा आठसो योजनके विस्तारवाला आता है उन छठा द्विपासे ९०० योजन तथा जगतीसे ९०० योजन लवणसमद्र में जावे तब नौसो योजनके विस्तारवाला सातवा द्विपा आता है इसी माफीक सात टापुपर सात द्विपोंकी लेन दुसरी तर्फभा समजना. एवं दो लेन में चौदा द्विपा हुवे इसी माफीक पश्चिमके लवणसमुद्र मेंभी १४ द्विपा है दोनों मिलाके २८ द्विप हुवे उन अठाविस द्विपोंके नाम इसी माफीक है। एकरूयद्विप,