________________
(९२)
शीघ्रबोध भाग २ जो.
अलसीया आढाइद्विपके पंदरा क्षेत्रमें ग्राम नगर सेड कषिट आदिके अन्दर तथा चक्रवर्त वासुदेवकी शैन्याके निचे जघन्य अंगुलके असंख्यात भाग उत्कृष्ट बारहा योजनका शरीर होता है जिनके शरीर में रक्त पाणी एसा तो जोरदार होते है कि उन पाणीसे वह बारहा योजनकी भूमिको थोथी बना देते है।।
(५) भुजपरकेभी अनेक भेद है जेसे नाकुल कोल मूषा आदि - यह जलचर थलचर खेचर उरपुरसर्प भुजपुर सर्प पांच प्रकारके संज्ञी गर्भज मनवाले होते है और यहही पाचों प्रकार के तीर्यच असंज्ञी मन रहीत समुत्सम होते है जो गर्भज है वह खि पुरुष नपुंसक होते है ओर जो समुत्सम होते है वह मात्र नपुंसक होते है एवं १० भेद हुवे इन दशोंके पर्याप्ता ओर द. शोंके अपर्याप्ता मिलाकर तीर्यच पांचेन्द्रियके २० भेद होते है एकेन्द्रियके २२ विकलेन्द्रियके ६ ओर पांचेन्द्रियके २० सर्व मी. लाके तीर्यचके ४८ भेद होते है।
(३) मनुष्यके दो भेद है (१) गर्भज मनुष्य (२) समु. त्सम मनुष्य-जिस्मे समुत्सम मनुष्य जो आढाइ दीप पंदरा क्षेत्र के कर्मभूमि १५ अकर्मभूमि ३० अन्तरदिपा ५६ एवं १०१ आति के मनुष्योंके निम्नलिखित चौदा स्थानमें आंगुलके असंख्याते भागकि अवगाहाना अन्तरमहुर्तका आयुष्यवाले अज्ञानी मिथ्यादृष्टि जीव उत्पन्न होते है चौदा स्थानोंके नाम यथा टटी, पैशाब, प्रलेष्म, नाकके मेलमें, वमन (उलटी) पीत्त, रौद्र रसी (वीगडा रक्त) वीर्य, शुखे हुवे वीर्य फीरसे भीना-आला होनेसे, घि पुरुषके संयोगमें, मृत्यु मनुष्यके शरीर में, नगरके किचमे, सर्व असूची-लाल मैल थुक विगेरे तथा असूची स्थान इन चौदे स्थानोंमें अन्तरमहुर्त के बाद जीवोत्पत्ति होती है और गर्भज मनुष्यों के तीन भेद है कर्मभूमि, अकर्मभूमि, अन्तरदिप-जिस्में पहला