SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 304 संगीतरत्नाकरः तिर्यप्रसारितैकाघि पार्श्वमन्यत्तलेन चेत् / मुहुः संयोजयेदुक्ता स्तम्भक्रीडनिका तदा / / 990 / / ___इति स्वम्भकीडनिका (20) स्थानेऽधिः खण्डसूच्याख्ये तिष्ठन्नाकृष्य गतः / लध्यतेऽन्याज्रिणा थत्र सोक्ता लडितजयिका / / 991 // इति ललितजलिका (21) स्फुरिताने मृतौ वेगास्पृशोः पादपार्श्वयोः / ___ इति स्फुरिता (22) क्रमादाकृश्चिताघिभ्यां पश्चाद्त्यावकुश्चिता // 992 // इत्यवकुचिता (23) (सु०) स्तम्भकीडनिकां लक्षयति-तिर्य गिति / यत्र तिर्यक् प्रसारितैकचरणः, अन्यपादतलेन पार्श्व संयोजयति ; सा स्नम्भक्रीडनिका // 990 // इति स्तम्भनक्रीडनिका (20) (सु०) लडितजद्धिका लक्षयति-स्थान इति / यत्र खण्डसूचिस्थानस्थः एक: पादः अन्यपादेन आकृष्य वेगेन लङ्घयते ; सा लड़ितजचिका // 991 // इति लखितजातिका (21) (सु०) स्फुरितां लक्षयति-स्फुरितेति / यत्र पादौ पृष्ठयोः पादपार्श्वयोश्च अग्रे वेगात् सरतः ; सा स्फुरिता // 991- // इति स्फुरिता (22) (सु०) अवकुञ्चिता लक्षयति-क्रमादिति / यत्र आकुचितौ पादौ क्रमात् पश्चात् गच्छतः; सा अवकुञ्चिता // *992 // इत्यवकुचिता (23) Scanned by Gitarth Ganga Research Institute
SR No.034230
Book TitleSangit Ratnakar Part 04 Kalanidhi Sudhakara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarangdev, Kalinatha, Simhabhupala
PublisherAdyar Library
Publication Year1953
Total Pages642
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size277 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy