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द्वितीयो रागविवेकाध्यायः पामामा धससनि धसनि धसनिधा माध गाग स सनिध पापारिगसरिग मा रिगसधनिधा मानिधससास ममा निधा सपा धमरिग रिमाधमधनिधनि धनि ध (मध्यम)मनिधा सास ममा निध स पापा-इति रूपकम् ।
इति कैशिकी।
प्रथमसौराष्ट्री पश्चमादेव सौराष्ट्री भाषा पान्तग्रहांशका। रिहीना सगधस्तारा ममन्द्रा सपभूयसी ॥ १७२॥ नियुक्ता सर्वभावेषु मुनिभिर्गमकान्विता।
पापापापमधनी सासासनीग सासासनि गानी गानी धाधा धध सास पापा पपधा पा धापामापा । मधनी मांधानी मां धनीसा सा । सनी गानी गां सासा स नी गा नी धा धाधधसा धममपा पप धापा धापामामा । मधनी मधनी । मां धनि सा सापमानी निधापम धापमध पापा-इत्यालापः।
पा पम स नीसा सनी गग सस नी गगनी नीगमग नीधाधाध धध मध सस । पाधा पाधा पामा मामा ममधम धधनी सा सनि गग सास । निधधस निधमपा पमधध पमधस पमधध धग मनी धध पा । पमनी नी नीधा पम धध पम धध पा-इति रूपकम् ।
। इति प्रथमसौराष्ट्री। (सं०) सौगष्टी लक्षयति- पश्चमादेवेति । पञ्चमन्यासग्रहांशा । ऋषभहीना षट्स्वरा । षड्जगान्धारधैवतैस्तारैयुक्ता । मन्द्रमध्यमा । षड्जपञ्चम
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