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द्वितीयो रागविवेकाध्यायः
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गापन्यासा दीर्घरिमा धमन्द्रोद्दीपने भवेत् ॥ ११६॥
धा गा गा धध निगां ध गांगागमसा मा मा मात्र मा धामागा मागा स स री गा मा पम गरि सनी री मरी गासनी सा सा । ध स धा नी नी धाध मा धा धा धधनी मा धा नी गा । गा गागममा सस मा सा सा सा पमा धा माम गा गा स स री गा माप म गरी सनी रि गारी सनी सा सा । स धानी नीधा धा धमा धा धाइत्यालापः ।
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धम गमम ध धधा मा मा गामा (षड्ज) सस धा धा धानि सनी साममध मधा । धा धा धनी नी गा धमास स री री गगम मपप ममपपरी री स स री री गग री री (षड्ज) ससनी नी सनि सासाधमगम धगम सनी धा धा धा नी सानी साम मध मधा धा- - इति रूपकम् ।
इति बाङ्गाली ।
आडकामोदिका
आडिकामोदिका तज्जा ग्रहांशन्यासधैवता |
ममन्द्रा तारगान्धारा गुर्वाज्ञायां समखरा ॥ ११७ ॥ इत्याsकामोदिका । गरी
कभाषा वेगरञ्जी निमन्द्रा धपवर्जिता ।
मध्यमबहुला । बाङ्गार्ली लक्षयति - धन्यासेति । गान्धारापन्यासा । दीर्घऋषभमध्यमा ॥ ११५-११६ ॥
(सं०) आडिकामोदिकां लक्षयति- आडिकामोदिकेति । वेगरञ्ज
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