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[जाति
संगीतरत्नाकरः २. री गम गा गा सा रिंग धस धा
न य नां बु जा धि ३. रिंग सा री गा सा सा सा सा
धा नी निस निध पा ग सू नु प्र ण य
गा सा गा के लि स मु सा धां धंनिं पां सा सा सा
सा गा सा मा पा स र स कृ त ति ल क सा गा मा धनि निध पा गा रिंग पं का नु ले प गा गा गा गा सा सा सा सा
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गरि सा मा मा प्र ण मा मि का म धा नी पा धनि री गा री सा
दे हे ध ना न १२. रिंग सा री गा सा सा सा सा
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न्यासत्वं शुद्धायां विकृतासु च नियतमिति । गांधारपञ्चमावपन्यासाविति विकृतावस्थामाश्रित्योक्तिः । शुद्धतायां तु नामस्वरस्य षड्जस्य चापन्यासत्वं
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