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________________ भूमिका योगाचारका सिद्धान्त है कि बाह्य पदार्थ तो वास्तविक नहीं हैं किन्तु हमारे ज्ञानकी वास्तविकताका निषेध नहीं किया जा स कता | योगाचार शब्द योग और आचार दो शब्दों से बना है। योग करने को योगाचार कहते हैं । भूमियों ( बौद्ध पूर्णताकी १७ श्रेणियों) की प्राप्तिका असाधारण कारण केवल योगको ही कहने के कारसे यह योगाचार कहलाता है । योगाचार प्रतिपादित किया हुआ मुख्य सिद्धान्त आलय विज्ञान है । यह चेतनात्मक ( Conseious ) अवस्थाओं का मूल है और हमारे 'आत्मा' के समान है । इस सम्प्रदाय के संस्थापकका कुछ भी पता नहीं चलता । परन्तु तिब्बत और चीनकी पुस्तकों में लंकावतार सूत्र, महासमय सूत्र, बोधिसत्त्वचर्यानिर्देश और सप्तदश भूमिशास्त्र योगाचार्यको इस संप्रदाय के प्राचीन तथा प्रामाणिक ग्रन्थ माना है । मैत्रेयनाथ और आर्य असङ्ग इसके आरंभिक अध्यापक थे। ऐसा प्रतीत होता है कि योगाचार की स्थापना लगभग सन् ३०० ई० के हुई थी, जब कि लंकावतार सूत्र आदि बनाये गये थे । माध्यमिकका सिद्धान्त है कि हमारा विज्ञान और उनके विषभूत बाद्यपदार्थ न तो पूर्ण रूपसे वास्तविक और न पूर्ण रूपसे काल्पनिक ही हैं । माध्यमिक शब्द मध्यम से बनता है । मध्यम बीच को कहते हैं । दोनों अन्तके सिद्धान्तोंको छोड़नेके कारणसे यह माध्यमिक कहलाता है । अर्थात् यह न तो सर्वास्तित्ववादी ही है और न सबके अस्तित्वका निषेध ही करता है । किन्तु इसने एक बीचका मार्ग चुनकर निश्चय किया कि संसारकी एक वैकल्पिक सत्ता (Conditional existence ) थी । यह कहा जाता है इसके संस्थापक नागार्जुन २५०-३२० ईस्वी तक हुए हैं । किन्तु वास्तव में इसके सिद्धान्त उससे प्राचीन ग्रन्थ प्रज्ञापारमितामें मिलते हैं । नागार्जुनकी माध्यमिककारिका, बुद्धपालितकी मूल माध्यमवृत्ति आर्यदेवका हस्तबल, भव्यकी मध्यमहृदयकारिका, कृष्णकी मध्यम प्रतीत्यसमुत्पाद, चन्द्रकीर्तिकी माध्यमिक वृत्ति और जयानन्तकी माध्यमिकावतार टीका माध्यमिक सम्प्रदायके मुख्य ग्रन्थ हैं। नागार्जुनके एक मूल माध्यमिक वृत्ति अकुतोभयका तिब्बी भाषामे अनुवाद मिलता है । जिसके अन्त में माध्यमिक दर्शन के इन आठ प्रचारकों (Expounders ) के नाम दिये हुए हैं-१ आर्य नागार्जुन,
SR No.034224
Book TitleNyayabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmottaracharya
PublisherChaukhambha Sanskrit Granthmala
Publication Year1924
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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