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________________ नृत्याध्यायः 170 सज्जनों के मत से देवताओं के प्रदक्षिणा में अराल हस्त को घुमाकर प्रदर्शित किया जाना चाहिए। . 'मैं कौन है ? 'तुम कौन हो ?' 'मेरे साथ सम्बन्ध कहाँ ?' इस प्रकार के असम्बद्ध भाषण के अभिनय में अराल हस्त की उँगलियों को बार-बार बाहर फेंकना या झटक देना चाहिए। त्रिपताकोदितेष्वेष कर्मस्वित्याह सिंहनः ॥१६४॥ 169 सिंहन (?) का मत है कि त्रिपताक हस्त के कार्यों में भी इस हस्त का विनियोग हो सकता है। १९. शुकतुण्ड हस्त और उसका विनियोग __ तर्जन्यनामिके यत्रारालस्यात्यन्तवक्रिते । तदासौ शुकतुण्डः स्यात् यदि अराल हस्त मुद्रा की तर्जनी और अनामिका उंगलियों को वक्र कर दिया जाय तो उसे शुकतुष्य हस्त (तोते की चोंच जैसा) कहा जाता है। -पातने तपाशयोः ॥१६॥ किसी के गिराने, द्यत और पासे के भाव-प्रदर्शन में शुकतुण्ड हस्त का विनियोग होता है। नाहं न त्वं न मे कार्य त्वयेति कथनेऽपि च । 171 धारणे लेखनस्यापि वीणादेरपि वादने ॥१६॥ प्रीतिकोपे नवेायामाह्वानेऽथ विसर्जने । 172 आर्द्रापराधके चाथ वश्चने परिवर्तितः ॥१६७॥ नायिकाप्रार्थनोक्तौ स्याद् धिगित्युक्तौ तु रोषतः ।। 173 न मैं','न तुम' और न 'तुमसे मेरा कोई कार्य है' ऐसे कथन; पत्र-धारण, लेखन, वीणा आदि के वादन, प्रीतिपूर्वक क्रोध, नयी ईर्ष्या, बुलाने, विदा करने, सरस या हास्यापराध के अभिनय में उक्त हस्त का विनियोग होता है। वंचन तथा नायिका की प्रार्थना के भाव-प्रदर्शन में इस हस्त को उलट कर प्रयुक्त करना चाहिए। धिक्कार है' इस कथन के अभिनय में उसे सरोष प्रयुक्त करना चाहिए। अवज्ञायां बहिःक्षिप्तस्त्रिनेत्र्यां भालसंश्रितः । अनतोक्ते यथौचित्यं ग्रहणेऽपि कमण्डलोः ॥१६८॥ 174 तिरस्कार के भाव-प्रदर्शन में उसे बाहर की ओर झटक देना चाहिए। त्रिनेत्र का भाव दर्शाने में उसे भाल पर रखना चाहिए ; और मिथ्या भाषण तथा कमण्डलु धारण करने में उसका यथोचित प्रयोग करना चाहिए। ८८
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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