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________________ हस्त प्रकरण उँगली को अंगुष्ठ से मिला देना चाहिए; किन्तु प्रजनन या उत्पादन के आशय में उसे (तर्जनी को) अलग कर देना चाहिए। सज्जन लोगों का मत है कि उपदेश के भावाभिनय में उसे मुख के पास से निकालते हए दिखाना चाहिए । तोषे तूत्तानितः स स्याचन्द्रिकासु चलाङ्गुलिः । केशानां बन्धने स्त्रीणामसो तेषां विकीर्णने ॥१५८॥ 163 द्विनिर्वा मण्डलाकारोऽथाह्वाने पतदगुलिः । सन्तोष के अभिनय में उक्त हस्त को उत्तान रखना चाहिए । चन्द्रिका (ज्योत्स्ना) के भाव-दर्शन में उसकी उंगलियों को कम्पित कर देना चाहिए। स्त्रियों के केशों के बाँधने तथा छितराने में उस हस्त को दो या तीन बार मण्डलाकार बनाना चाहिए। किसी को बुलाने के आशय में उसकी उँगलियाँ गिरती हुई प्रदर्शित करनी चाहिएँ। धृतिस्थैर्यबलोत्साहगर्वगाम्भीर्यदर्शने ॥१५६॥ 164 नाभिक्षेत्रादयं कार्यो धीररुवं शिरोवधिः । अधोमुखो लाभ(?भाल)देशस्वेदापनयने भवेत् ॥१६०॥ 165 वैर्य, स्थिरता, बल, उत्साह, गर्व और गंभीरता दिखाने में उसे धीर पुरुष, नाभि के निकट ले जाकर ऊपर शिर तक ले जायें । ललाट का पसीना पोंछने के आशय में उसे अधोमुख कर देना चाहिए। भालस्थोऽप्यन्यपाचच्चेद् भ्रमन्नायाति वर्तुलः । स्वपार्वे जनसंघे स्याद्विवाहे तु करद्वयम् ॥१६१॥ 166 प्रदक्षिणं भ्रमत् कार्य स्वस्तिकाकारतां गतम् । अगुल्यग्रस्थितं कार्य केवलस्तु प्रदक्षिणम् ॥१६२॥ 167 जन-समूह के अभिनय में अराल हस्त को ललाट पर रख कर वहाँ से गोलाकार में घुमाते हुए दूसरे के बगल से अपने बगल में ले आना चाहिए। विवाह के अभिनय में दोनों अराल हस्तों को स्वस्तिक मुद्रा में प्रदक्षिणा कराते हुए घुमाना चाहिए; किन्तु प्रदक्षिणा केवल उँगलियों के अग्रभाग द्वारा ही होनी चाहिए। भ्रमन्प्रदक्षिणे सद्भिर्देवानां स नियुज्यते । कोऽहं कस्त्वं मया साधं सम्बन्धः क्वेति भाषणे ॥१६३॥ 168 असंबद्ध बहिःक्षिप्ताङ्गुलिरेष पुनः पुनः ।
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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