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नृत्याध्यायः
कपित्थौ हस्तकौ स्यातामथ सत्ये वरे तथा । 73
उपपन्नेऽप्येवमर्थे यथौचित्यं स युज्यते ।। तलवार आदि आयधों के बाँधने के भावाभिव्यंजन में दोनों कपित्थ हस्तों को कमर पर रखना चाहिए। निश्चय करने के आशय में दोनों कपित्थ हस्तों को सर्वथा उपयुक्त स्थान में रखना चाहिए । सत्य, वरदान और समीचीन वस्तु का भाव प्रकट करने में कपित्थ हस्त को यथोचित रीति से प्रयोग करना चाहिए।
शिखरस्यापि कर्माणि योज्यान्यस्मिन्यथोचितम् ॥७१॥ 74 शिखर हस्त के अभिनय में भी कपित्थ हस्त का यथोचित रीति से प्रयोग किया जा सकता है। १३. खटकामुख हस्त और उसका विनियोग
कपित्थस्योत्थिते वक्र यत्रानामाकनिष्ठिके ॥७२॥
यदा तदासौ खटकामुखः प्रोक्ता मनीषिभिः । यदि कपित्थ हस्त की अनामिका और कनिष्ठा उँगलियाँ उठी होकर (अग्रभाग से) मुड़ी हुई हों, तो मनीषियों के मतानुसार उस मुद्रा को 'खटकामख हस्त' कहा जाता है।
असौ शराकर्षणे स्याद्दर्पणग्रहणे तथा ॥७३॥ वालग्रहे लगादाने छत्रचामरधारणे। 76 पुष्पावचयने हारे बीटिकादिग्रहेऽपि च ।
पत्रवन्तच्छेदने च योज्यो धीरैर्यथोचितम् ॥७४॥ 77 कपित्य हस्त का विनियोग बाण-सन्धान करने, शीशे में मुंह देखने, बच्चे को गोद में लेने, माला पहनने, छत्र तथा चामर धारण करने, फूल चुनने, हार तथा ताम्बूल आदि ग्रहण करने और पत्तों के इंठल तोड़ने के अभिनय में होता है।
च्युतसन्दंश एष स्याद् बन्धनस्थेऽथ पार्श्वगः ।
वक्षोदेशात्प्रयोक्तव्यश्चित्तस्याहरणे बुधैः ॥७॥ 78 बन्धन में पड़े हए का भाव प्रदर्शित करने में सँड़सी की भाँति फैलाकर इस हस्त को बगल में रखना चाहिए। बध जनों का मत है कि चित्तहरण के भाव-दर्शन में इसका प्रयोग वक्ष पर करना चाहिए।
सयुद्धतौ त्वधो गत्वोद्धृतोऽथ स भवेत्करः । संगमादौ वरस्त्रीणां प्रियेणांशुककर्षणे ॥७६॥ 79