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________________ हस्त प्रकरण या तबला बजाने, चाबुक धारण करने और मोती आदि गूंथने के भाव प्रकट करने में कपित्थ हस्त का वनियोग होता है । तिर्यगायत एष स्यादेखायामथ नाभितः ॥ ६५ ॥ ऊर्ध्वोत्थितो रोमराजौ दिग्बन्धे तूर्ध्वगो भ्रमन् । सशब्दच्युत सन्दंशोऽधस्त्वगादि उत्तानितोऽधोमुखः स्यादूर्ध्वास्यः निरूपणे ॥६६॥ पुरुष श्मश्रुदेशस्थस्तथा पुरोगत: ग्रहणे पार्श्वगामी श्रसौ सूक्ष्मवस्तुनि । रेखा का भाव दिखाने के लिए कपित्थ हस्त को तिरछा करके प्रदर्शित करना चाहिए । रोमावली का भाव दिखाने के लिए उसे नाभि से ऊपर उठाना चाहिए। दिशाओं को बांधने का भाव दिखाने में उसे ऊपर की ओर घुमाकर फिर सँड़सी के आकर में सशब्द करके ( चुटकी बजाकर ) उठा देना चाहिए । पर्वत या वृक्ष का भाव दिखाना हो तो उसे उत्तान करके अघोमुख कर देना चाहिए और सूक्ष्म वस्तु के अभिव्यंजन में ऊर्ध्वमुख कर देना चाहिए । श्मश्रुप्रसाधने ॥६७॥ कार्यश्चित्रताडनयोरथ । स्याचामरस्यापि धारणे ॥६८॥ कार्यों 68 69 पुरुष और दाढ़ी-मूंछों के भाव दर्शन में कपित्थ हस्त को दाढ़ी-मूंछों के पास रखना चाहिए । आश्चर्य और ताड़न के आशय में उसे सामने अवस्थित करना चाहिए। किसी वस्तु को ग्रहण करने और चामर धारण करने में उसे बगल में स्थित होना चाहिए । उन्मूलने व सम्प्रयुज्यते । नाभिदेशस्थितावेतौ नीव्याः काञ्च्याच बन्धने ॥ ६६ ॥ गत्वोद्धृतोऽसौ खड्गाद्यायुधबन्धने । सर्वथास्थानेऽवधारण निरूपणे ॥७०॥ 70 किसी वस्तु को उखाड़ने का भाव प्रदर्शित करना हो तो कपित्थ हस्त को नीचे ले जाकर ऊपर उठा देना चाहिए। नीवी ( धोती की गाँठ या इजारबन्द) और कॉची ( मेखला या करघनी) खोलने में दोनों कपित्थ हस्तों को नाभि के पास रखना चाहिए । कटिक्षत्रगतौ श्रवश्यं 71 72 ७१
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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