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________________ हस्त प्रकरण सशब्दच्युतसन्दंश एष विश्वासनादिषु । कलाकाप्त्या (?ष्ठा) मुहर्तेषु जम्भणेऽपि क्षणे तथा ॥४२॥ 44 गीतादिमानताले च शैघ्या निर्भर्त्सनेऽपि च । बालाह्वानेऽप्यसावेव छोटिका प्रोच्यते बुधैः ॥४३॥ 45 विश्वास दिलाने आदि कार्यों में, समय के परिणाम, यथा काष्ठा (कला का ३०वां भाग), मुहूर्त, जमुहाई की काल-मर्यादा तथा क्षण में, संगीत आदि के ताल-मेल में, शीघ्रता में, भर्त्सना करने में और बालकों को बुलाने में-सँडसी की तरह मुड़ी एवं मिली हई उँगलियों के शब्द, अर्थात् चुटकी बजाने या चुटकी काटने, का प्रयोग करना चाहिए । नाट्याचार्यों ने इस तामचूड हस्त को छोटिका (चुटकी काटने) नाम से कहा है । मुष्टिमूर्धू (?x) कनिष्ठं तु ताम्रचूडं परे जगुः । असौ योज्यः सहश्रा (?स्रा)दौ संख्यायामथविन्दुषु ।। क्षिप्तमुक्ताङ्गुलिस्तद्वत्स्फुलिङ्गोष्वपि कीर्तितः ॥४४॥ कुछ विद्वान् ऐसे मुष्ठिबन्ध को ताम्मचूड हस्त कहते हैं, जिसमें कनिष्ठा उँगली ऊपर उठी हुई हो । इस हस्त-मुद्रा का विनियोग हजार आदि संख्या या विन्दुओं का भाव व्यक्त करने में किया जाता है। इसी प्रकार कुछ लोगों के मत से यदि इस हस्त मुद्रा की उँगलियों को खोल दिया जाय तो अग्निकणों के भाव प्रदर्शित करने में उसका विनियोग किया जाता है। १०. मुष्टि हस्त और उसका विनियोग अगुल्यग्रा यदा गुप्तास्तलमध्ये सुसंयताः । 47 . . पीडयित्वा स्थितोऽङ्गुध्वो(?ष्ठो)मध्यमां यस्यस स्मृतः ॥४५॥ करो मुष्टिरशोकेन पृथिवीन्द्रेण धीमता । 48 बुद्धिमान् राजा अशोक का कहना है कि यदि हाथ की (चारों) उँगलियों के अग्रभाग को हथेली के बीच भली भाँति बाँध दिया जाय और अंगुष्ठ मध्यमा को दबा कर अवस्थित रहे तो उसे मुष्टि हस्त कहते हैं। यष्टिग्रहे किमर्थे च स्थितावप्ययमिव्य (?ष्य) ते ॥४६॥ दोहने च गवादीनां रसनिष्कासनेऽपि च । 49 कुन्तखङ्गाहेऽप्येष मल्लयुद्धे कराविमौ ॥४७॥ लाठी पकड़ने, 'ऐसा क्यों'-इस प्रकार पूछने, ठहरने, गो आदि दोहने, रस निकालने, भाला तथा
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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