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________________ नत्याध्यायः नृत्याचार्यों के मतानुसार थोड़े फल, नपे-तुले कौर, बालक की ठुड्ढी पकड़ने, स्तनाग्र, पांच पूल (कमल, अशोक, आम्रमंजरी, नवमल्लिका और रक्त अशोक), मंत्रणा और स्त्री की क्रोधभरी वाणी के भाव व्यक्त करने में उँगुलियों को मुख के पास रखकर काँगल हस्त का विनियोग करना चाहिए। बिडालादिपदेऽप्येष तथा यवनभोजने ॥३७॥ . अधोमुखो नियोज्योऽथ वुल्पा(? ार्मा) दूर्ध्वमुखो मतः । 39 ऋतौ बिम्बे च शङ्कायां वृत्तान्ते रत्नशब्दयोः ॥३८॥ बिल्ली आदि के पैरों और यवनों के भोजन के अभिनय में कांगूल हस्त को अधोमुख करना चाहिए। तरंग, यज्ञ, बिम्ब, शंका, वृतान्त, रत्न और शब्द के अभिनय में उसे ऊर्ध्वमुख में रखना चाहिए। .. अग्रसंकोचनादेष सन्दष्टे कथितो बुधैः। 40 मुखस्थितो भवेदेष सन्देशवचनादिषु ॥३६॥ पूर्वाचार्यों का मत है कि काटने या डंक मारने के अभिनय में कॉगल हस्त की उँगलियों को अग्रभाग से सिकोड़ लेना चाहिए। सन्देश-कथन आदि के अभिनय में उसे मुख पर अवस्थित करना चाहिए। पृष्ठायातावुभौ कार्यों बालायां स्वस्तिकाविमौ । 41 कुचदेशगतौ कार्यों पश्चादर्थे तु लोकतः । कान्तराण्येवमस्य बुधैरुक्तानि शास्त्रतः ॥४०॥ 42 बाला स्त्री के अभिनय में दोनों कांगूल हस्तों को स्वस्तिक मुद्रा में अवस्थित कर पृष्ट भाग से आते हुए दिखाना चाहिए। लोक-परम्परा के अनुसार इस हस्त-मुद्रा को कुचों के पास रखने का भी विधान है। इसी प्रकार नाटयाचार्यों ने शास्त्रीय दृष्टि से कॉगल हस्त के अन्य भी अनेक भेद बताये है। ९. तामचूड हस्त और उसका विनियोग मध्यमाङ्गुष्ठयोर्यत्र सन्दंशस्तर्जनी नता । शेषे तलस्थिते स्तोऽसौ ताम्रखंडः करो मतः ॥४१॥ 43 यदि मध्यमा और अंगुष्ठ को मोड़ कर मिला दिया जाय तथा तर्जनी को घुमा कर झुका दिया जाय (किन्तु बह हथेली को स्पर्श न करती हो) और शेष दोनों उँगलियों (अनामिका और कनिष्ठा) को हथेली पर रख दिया जाय तो उसे ताम्रचूड हस्त कहा जाता है।
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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