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________________ लास्यांग प्रकरण जब नृत्य में नर्तकी गीत, वाद्य, ताल और में लय भी किसी प्रकार की त्रुटि न करती हई जन-मन को आकृष्ट कर ले, तब वह नीकी लास्यांग होता है २३. नमनिका अङ्गानां यत्र पात्रस्य प्रयासव्यतिरेकतः । 1657 नमनं स्यात् प्रयोगेषु दुष्करेष्वपि सा तदा ।। मता नमनिका धीरैः सम्यानन्दविवर्धनी ॥१५४६॥ 1658 जहाँ अत्यन्त कठिन प्रयोगों में बिना प्रयास के भी (स्वाभाविक रूप में)पात्र के अंगों का नमन होता रहता है, धीर पुरुष उसे, सभासदों के आनन्द को बढ़ाने वाली, नमनिका नामक लास्यांग कहते हैं। २४. शंका प्रङ्गानि तावदौद्धत्याचालयित्वा सविभ्रमम् । पुनराहार्य तान्यग्ने पार्श्वयोरपि नर्तकी । 1659 वञ्चयन्तीव चेल्लोकं नृत्येच्छङ्का तदोदिता ॥१५५०॥ जहाँ अंगों को उद्धतता से विलासपूर्वक चलाकर नर्तकी पुनः अंगों को आगे तथा बगलों में भी संचालित करके लोगों को ठगती हुई-सी नृत्य करे, तो वहाँ शंका नामक लास्यांग होता है। २५. वितर. स्वभावाल्ललितं चारीकरणादिबलाद् यदा । 1660 कुरुते कठिनं यत्र तदेवं वितडं मतम् ॥१५५१॥ . जहाँ चारी, करण आदि के बल से कठिन नृत्य को भी स्वाभाविक रूप में सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया जाय, वहाँ वितड नामक लास्यांग होता है। २६. गीतवाचता नृत्येदनुगुणं यत्र नर्तकी गीतवाद्ययोः । 1861 अक्षराणां लयस्यापि समता गीतवाद्यता ॥१५५२॥ जहाँ नर्तकी गीत और वाद्य के अनुकल नृत्य करे और अक्षरों तथा लय की भी संगति रहे, नहाँ गीतावद्यता नामक लास्यांग होता है। २७. विवर्तन वाद्यप्रबन्धवर्णानां यत्र साम्येन नर्तनम् । . 1882 ३८९
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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