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________________ मत्याध्यायः -मध्यमे मदे ॥१२९७॥ मध्यम मद के अभिनय में मव्यस्खलित करण का विनियोग होता है ।। १०५. अर्गल और उसका विनियोग वामस्याघ्रःकनिष्ठायाःभागेऽज्रिीदक्षिणःस्थितः। 1343 अथान्यः स्तब्धजङ्घः सन् सार्धतालद्वयान्तरे ॥१२९८॥ प्रसारितोऽथ पाणिः सन् स्तब्धबाहुः स्वपार्श्वके । 1344 यदालपल्लवः किश्चित्प्रसृतानोऽपरस्तदा । अर्गलं गदितं धीरःयदि बाय पैर की कनिष्ठा उँगली के अग्रभाग में दाहिना पैर अवस्थित किया जाय; दूसरे पैर को जंघा निश्चल रहे; एक पैर दूसरे पैर के ढाई ताल आगे रख दिया जाय; उसके बाद एक हाथ की बाँह निश्चल रहे और वह अपने पार्श्व में अलपल्लव मुद्रा में हो; दूसरा हाथ (पैरों की उक्त स्थिति के अनुरूप) अग्रभाग में कुछ प्रसृत होकर अवस्थित रहे ; तो विद्वानों के मत से उसे अर्गल करण कहा जाता है। -अङ्गन्दादि परिक्रमे ॥१२६६॥ 1345 अंगद आदि की गति के अभिनय में अर्गल करण का विनियोग होता है। १०६. रेचकनिकुट्टक सव्यः स्याद्रचितः पाणिः सपादस्तु निकुट्टितः । वामो दोलाकरो यत्र तद्र चकनिकुट्टकम् ॥१३००॥ 1346 यदि दाहिना रेचित हस्त, पैर सहित कूटा जाय और बाये हाथ दोलाकर मुद्रा में हो, तो उसे रेचकनिकुट्टक करण कहते हैं। १०७. नागापसपित और उसका विनियोग [हस्तौ चेद् रेचितौ स्यातां शिरस्तु परिवाहितम्']। स्वस्तिकीभूय चेदज्री कुरुतोऽपसृति तदा । 1347 नागापसपितं प्रोक्तं नृत्तः - यदि दोनों हाय रेचित मुद्रा में हों, शिर परिवाहित हो और दोनों पैर स्वस्तिक होकर पीछे की ओर चलें, तो नत्तवेत्ताओं ने उसे नागापसपित करण कहा है। १. देलिए : संगीतरत्नाकर, अध्याय ७, श्लोक ७४५ (अबियार संस्करण) ।
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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