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________________ नत्याध्यायः यदि बाँये पैर से आक्षिप्ता चारी का निर्माण कर हाथ को व्यावृत्त तथा परिवृत्त किया जाय; दाहिने पार्श्व को नत किया जाय; फिर उसे अराल मुद्रा में परिणत कर दिया जाय; तो उसे उपसृत करण कहते हैं। श्रीमदशोकमल्लेन विनयेनोपसर्पणे ॥१२६०॥ नपति अशोकमल्ल के अनुसार विनयपूर्वक समीप आने के अभिनय में उपसत करण का विनियोग होता है। ९९. विष्णुक्रान्त और उसका विनियोग यत्रोवं प्रसरत्यग्रे चरणश्चलनोन्मुखः । 1334 कुञ्चितोऽथ यदा स्यातां हस्तकौ रेचितौ तदा । विष्णुकान्तमिदं प्रोक्तम्आगे चलने के लिए उन्मुख कार की ओर प्रसारित पर यदि मोड़ दिया जाय और दोनों हाथों को रेचित कर दिया जाय; तो उसे विष्णुकान्त करण कहते हैं । ___ -विष्णुक्रमणगोचरम् ॥१२६१॥ 1335 भगवान् विष्णु की गति के अभिनय में विष्णुकान्त करण का विनियोग होता है। १००. अपक्रान्त बद्धां चारीमपक्रान्तां चाचरन् रचयेत्करौ । प्रयोगानुगतौ यत्र तदपक्रान्तमीरितम् ॥१२६२॥ 1336 यदि बद्धा और अपक्रान्ता चारियों की रचना करते हए (अर्थात् दोनों जाँघों से वलित करके टाँगें अपक्रान्त क्रम में चलायी जाय); दोनों हाथों को भी तदनुसार संचालित किया जाय ; तो उसे अपक्रान्त करण कहते हैं। १०१. ऊरूवृत्त और उसका विनियोग चार्योरुद्वृत्तया सार्धमरालखटकामुखौ । यत्रोरुपृष्ठयोय॑स्येद्वर्तनापूर्व को करौ ॥१२६३॥ 1337 ऊरूवृत्तमिदं प्रोक्तम्यदि ऊरुदवत्ता चारी के साथ अराल और खटकामुख हस्तों को वर्तना क्रिया के उपरान्त, ऊरु के पृष्ठभाग पर रख दिया जाय; तो उसे ऊरुवृत्त करण कहते हैं । १२८
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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