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________________ नृत्तकरण प्रकरण यदि अलात चारी की रचना करके दोनों हाथों को रेचित में कर दिया जाय; फिर उन्हें अलपद्म में परिणत करके घुमाव के साथ भीतर की ओर सिकोड़ कर भुजा और सिर पर रख दिया जाय तो उसे वृक्रीडित करण कहते हैं । ९६. एलकाक्रीडित और उसका विनियोग एलकाक्रीडिता चेद्दोलखटका मुखौ । सन्नतं वलितं चाङ्गमेलकाक्रीडितं तदा । यदि एकाक्रीडिता चारी की रचना करके दोनों हाथों को दोल तथा खटकामुख में कर दिया जाय; शरीर झुका तथा वलित हो; तो उसे एलकाक्रीडित करण कहते हैं । गमने त्वधमानां तन्नियोज्यं नृत्तवेदिभिः ॥ १२८६ ॥ 1329 नाट्याचार्यों के मत से तुच्छ व्यक्तियों की गति के अभिनय में एलकाक्रीडित करण का विनियोग होता है । ९७. विष्कम्भ चारी 1328 करः । अपसृत्य यदा वामं सव्यः सूचीमुखः उपगच्छेत्रिकुट्टघेत सपादोऽन्यः करो हृदि ॥ १२८७॥ 1330 विधायैवं पराङ्गं च सूचीपादस्तु दक्षिणः । एषोऽलपल्लवः पाणिरपरः पूर्ववद्भवेत् । पौनः पुन्येन यत्रैवं विष्कम्भं तदोदितम् ॥१२८८ ॥ कृत्वा क्षिप्ताभिधां वामभागे चारों ततः करम् । व्यावृत्तं परिवृत्तं च सव्ये पार्श्वे नते यदि ॥ १२८६ ॥ अरालतां नयेदेनं तदोपसृतमीरितम् । 1331 यदि बाँये हाथ को हटाकर उसे दाहिने सूचीमुख हाथ के समीप लाया जाय और पैर सहित कुट्टित किया जाय; फिर दूसरे दाहिने हाथ को हृदय पर अवस्थित किया जाय; शरीर को भी तद्वत् संचालित किया जाय; तत्पश्चात् दाँयें सूचीपाद और बाँयें अलपल्लव हस्त को बार-बार इसी प्रकार किया जाय ; तो उसे विष्कम्भ करण कहते हैं । ९८. उपसृत और उसका विनियोग 1332 1333 ३२७
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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