SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नुत्तकरण प्रकरण 1299 मदमत्तता या भाववेग में लड़खड़ाकर अपसारित करके चलने के अभिनय में सपित करण का विनियोग होता है। ७६. मयूरललित पाचरेद् रेचितौ हस्ताबूरावाकुञ्च्य वृश्चिकम् । 1297 अघ्रि यत्र भ्रमरिकां विदध्यान्नर्तको यदि । तत्तदा करणं प्रोक्तं मयूरललिताभिधम् ॥१२६१॥ 1298 यदि अभिनेता दोनों हाथों में रेचित की रचना कर फिर पैर को जाँघ पर सिकोड़ कर वृश्चिक बनाये; अन्त में भ्रमरिका चारी धारण करे; तो उसे मयूरललित करण कहते हैं । ७७. सूचीविद्ध और उसका विनियोग पक्षवञ्चितकः कट्यां यद्वा स्यादर्धचन्द्रकः । वक्षःस्थः खटकास्योऽन्यः सूच्यध्रिः परपाष्णिगः । यत्रतत्करणं सूचीविद्धम्यदि पक्षवंचितक या अर्धचन्द्र एक हस्त कटि पर और खटकास्य दूसरा हस्त वक्ष पर अवस्थित हो; एक सूचीपाद दूसरे सूचीपाद के समान एड़ी पर रहे; तो उसे सूचीविद्ध करण कहते हैं । -चिन्तादिषु स्मृतम् ॥१२६२॥ चिन्ता आदि के अभिनय में सूचीविद्ध करण का विनियोग होता है। ७८. प्रेङ खोलित और उसका विनियोग . दोलापादं विधायकपादेनाथ पराघ्रिणा । उत्प्लुत्य भ्रमरों यत्र विदध्यानर्तको यदि । प्रेडोलितं तदायदि अभिनेता एक पैर से दोलापाद की रचना कर दूसरे पैर से उछलकर भ्रमरी का अवलम्बन करे; तो उसे प्रेङखोलित करण कहते हैं । -योज्यमेतल्लीलापरिक्रमे ॥१२६३॥ 1301 1300 लीला की गति प्रदर्शित करने में प्रेडखोलित करण का विनियोग हो
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy