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________________ नत्याध्यायः विद्वानों के मत से गरुड़ आदि बड़े पक्षियों के युद्ध के अभिनय में गध्रावलीनक करण का विनियोग होता है। ७३. दण्डपाद और उसका विनियोग यत्र नूपुरपादाख्या दण्डपादाभिधा तथा । चारो स्यादथ चेत् क्षिप्रं पाणिः स्थाप्येत दण्डवत् । 1293 तत्तदा दण्डपादं स्यात्यदि पैरों से नपुरपादा और दण्डपादा नामक चारियाँ बना ली जायँ; हाथ को वेग से दण्डवत् रखा जाय; तो उसे दण्डपाद करण कहते हैं । -साटोपे तु परिक्रमे ॥१२५७॥ आडम्बर सहित (या अभिमानपूर्ण) गति के अभिनय में दण्डपाद करण का विनियोग होता है। ७४. सन्नत और उसका विनियोग मृगप्लुतां विधायाघ्रिः स्वस्तिकः पुरतः करौ। 1294 दोलौ यदा सन्नतं स्यात्यदि मगप्लुता की रचना करके पैरों को स्वस्तिक में आगे रख दिया जाय और दोनों हाथों को दोला मुद्रा में किया जाय, तो उसे सन्नत करण कहते हैं । -नीचापसरणे तदा ॥१२५८॥ नीचों को हटाने के अभिनय में सन्नत करण का विनियोग होता है। ७५. सपित और उसका विनियोग पराऽरञ्चिते पादे त्वपसर्पति मस्तकम् । 1295 नामितं रेचितः पाणिरसौ तपार्श्वके यदि ॥१२५६॥ एवं पराङ्ग यत्रेदं सपितं करणं तदा । 1296 यदि दोनों पैर अञ्चित में, मस्तक अपसर्प में हो; एक हाथ नमित और दूसरा रेचित होकर उसके पार्श्व में अवस्थित रहे; और अन्य अंग भी उसी का अनुसरण करे, तो वहाँ सर्पित करण होता है। उपसृत्यापसरणे मत्तस्य परिकीतितम् ॥१२६०॥ ३२०
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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