SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नृत्तकरणों का निरूपण करण ( हस्त-पाद-संयुक्त अभिनय ) योऽङ्गोपाङ्गकरप्रचारकरणः सन्तोषितः स्थानकैः । चारीभिश्च मनोहरो सुररिपुर्गोपाङ्गनाभिविभुः । नत्वाहं तमकिञ्चनं परिलसत्पीताम्बरालङ्कृतम् । संच करणं तु सम्प्रति मुदे नृत्तार्थिनां नृत्तवित् ॥ १११६ ॥ 1135 जो मनमोहन श्रीकृष्ण अंगों तथा उपाँगों सहित हस्त-संचालन-रूप करणों, स्थानकों और चारियों के प्रयोग से गोपांगनाओं द्वारा सन्तुष्ट (प्रसन्न ) किये गये, उन अकिंचन तथा पीताम्बर से अलंकृत भगवान् को नमस्कार करके अब मैं नृत्तवित्, नृत्तार्थियों के मनोरंजन के लिए करण का निरूपण करता हूँ । श्रविच्छिन्नरसा पाणिपादादेर्या निरन्तरा । क्रिया तनृत्तकरणं कीर्तितं 1134 नृत्तवेदिभिः ॥ १११७॥ 1136 हाथ-पैर आदि ( के संचालन) से निरन्तर एवं अविच्छिन्न रूप से रस का अभिभावन करने वाली जो क्रिया है, नाट्याचार्यों ने उसे अभिनय का करण कहा है । करण के भेद भेदान् कतिपयानस्य व्याहरे मुनिसम्मतान् ॥ १११८ ॥ 1137 भरत मुनि द्वारा कथित या अभीष्ट उसके (करण के) कतिपय भेदों का मैं यहाँ निरूपण कर रहा हूँ । तलपुष्पपुटं वक्षःस्वस्तिकं वतितं तथा । मण्डलस्वस्तिकं लीनमुन्मत्तं वलितोरु च ॥ १११६ ॥ स्वस्तिकं स्वस्तिकान्यर्धदिव पृष्ठोपपदानि च । प्राक्षिप्तरेचितालातभुजङ्गत्रासितानि च ॥ ११२०॥ 1138 २९१
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy