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________________ पारी प्रकरण 1124 1125 1126 १८. तिरश्चीनकुट्टिता प्रनिनिकुट्टितः पूर्व स्वपार्श्वपरपार्श्वयोः । मध्ये निवेशितः पश्चात्तिर्यक् तत्रैव कुट्टितः ॥११०७॥ यत्र सा स्यात्तिरश्चोनकुट्टितान्वर्थनामभाक् । पहले पैर को अपने पार्श्व तया दूसरे (पैर) के पार्श्व में कूटकर मध्य में स्थापित किया जाय; पश्चात् वहीं पर उसे तिरछा करके कटा जाय; ऐसी क्रिपा को अर्थ के अनुरूप तिरश्चीनकुट्टिता चारी कहते हैं । १९. अनुलोमविलोमका चारी त्रिकोणचारी चैदनुलोमविलोमगा। स्वस्थाने स्थापितपदा ततस्तत्रापि कुट्टिता । तदा निगदिता सद्धिरनुलोमविलोमका ॥११०८।। यदि त्रिकोणचारी नामक चारी अनुलोम (यथाक्रम) और विलोम (विपरीतक्रम) को प्राप्त कर अपने स्थान ' में स्थापित चरण वाली बनती है, तथा वहाँ कूटी भी जाती है, तो उसे सज्जन लोग अनुलोमविलोमका चारी कहते हैं। २०. प्रतिलोमानुलोमका ___ व्यत्यासादचिता सैव प्रतिलोमानुलोमका ॥११०६॥ 1127 उक्त चारी को व्यतिक्रम करके बनाने से प्रतिलोमानुलोमका चारी होती है । २१. पुरस्ताल्लुठिता पुरस्ताल्लुठिता सा स्याद्यत्राङ्क्रिटुंठितः पुरः ॥१११०॥ जहाँ पर आगे लोटता है वहाँ पुरस्ताल्लुठिता चारी होती है । २२. पृष्ठलुठिता ....पादश्चेत्कुञ्चितः पृष्ठे लुठितोऽगुलिपृष्ठतः । पुनश्च लुठितः स्थाने स्यात् पृष्ठजुठिता तदा ॥११११॥ यदि पैर पृष्ठभाग में सिकुड़ा हुआ हो; उँगलियों के पृष्ठभाग से लोटा हुआ हो; और स्थान पर पुनः लोट जाय, तो उसे पृष्ठठिता चारी कहते हैं । 1128 २८७
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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