SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नृत्याध्यायः १४. चक्रकुट्टनिका यदाघ्रि कुट्टितं पाश्वाभ्रामयित्वा निवेशयेत् । 1118 ततः स्थाने कुट्टयेच्च चक्रकुट्टनिका तदा ॥११०२॥ जब कूटे हुए पैर को बगल में घुमाकर रखा जाय और उसे फिर स्थान पर कूटा जाय, तो उसे चक्रकुट्टनिका चारी कहते हैं। १५. मध्यस्थापनकुट्टा पादश्चेत्कुट्टितः पूर्व पुरः पश्चाग्निवेशितः । 1119 मध्ये निवेशितश्चाथ पुनस्तत्रैव कुट्टितः । मध्यस्थापनकुटेति तदान्वर्था प्रकीर्तिता ॥११०३॥ 1120 यदि पहले पैर को कटकर आगे-पीछे स्थापित किया जाय और फिर मध्य में स्थापित कर पुनः वहीं पर कुटा जाय, तो उसे अर्थ के अनुरूप मध्यस्थापनकुट्टा चारी कहते हैं। १६. चतुष्कोणनिकुट्टिता यत्राद्भिः कुट्टितः पूर्व पुरः पश्चान्निवेशितः । व्यस्रभावात्पुनश्चापि पुरः पश्चात्तदान्यथा । 1121 स्थाने च कुट्टितः सा स्याच्चतुष्कोणनिकुट्टिता ॥११०४॥ जहाँ एक पैर को पहले कूटकर आगे-पीछे स्थापित किया जाय; फिर त्रिकोणभाव से आगे-पीछे रखा जाय; पुनः विपरीत भाव से स्थान पर कूटा जाय; ऐसी क्रिया को चतुष्कोणनिकुट्टिता चारी कहते हैं । १७. त्रिकोणचारी प्रििनवेशितो यत्र स्थापितोऽङ्गुलिपृष्ठतः । 1122 निकुट्टितः पुरः पावें पृष्ठे वाथ निवेशितः ॥११०५॥ अज्रिरगुलिपृष्ठेन पुनः स्थाने च कुट्टितः । 1123 सोक्ता त्रिकोणचारीति सद्भिरन्वर्थनामभाक् ॥११०६॥ जहाँ पैर को प्रविष्ट करके उँगुलियों के पृष्ठभाग से स्थापित किया जाय; फिर कूटकर आगे या बगल में या पीछे प्रविष्ट किया जाय%; अनन्तर उँगलियों के पृष्ठभाग से पुनः उसे स्थान पर कूटा जाय; ऐसी क्रिया को अर्थ के अनुरूप त्रिकोणचारी चारी कहते हैं । २८६
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy