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________________ चारी प्रकरण यदि स्वस्तिकाकार पैरों में एक को थोड़ा हिलाया जाय और दूसरे पैर को आगे मोड़ दिया जाय, तो वह विद्धा चारी कहलाती है। १२. अंघालंघनिका माकुञ्चिताघ्रिमन्येन पादेन दिवि लङ्घयेत् ।। 1091 यत्रासौ कथिता चारी जङ्घालवनिका बुधः ॥१०७२॥ यदि किञ्चित् मुड़े हुए एक पर को दूसरे पैर से आकाश में लांघा जाय, तो उसे विद्वान् लोग जंघालंघनिका चारी कहते हैं। १३. सूची पार्श्वेनोरो विनिक्षिप्य चरणं चेत् प्रसारयेत् । 1092 तीक्ष्णाग्रं यत्र सा सूची तदोक्ता वृत्तवेदिभिः ॥१०७३॥ यदि पार्श्व से छाती को दबाकर तीक्ष्ण अग्रभाग वाले चरण को फैला दिया जाय, तो नृत्त के विद्वान् उसे सूची चारी कहते हैं। १४. प्रावत यत्राज्रिरुद्धृतो मूतिर्वलिता ललिता भवेत् । ... तदुक्तं प्रावृतं सद्भिः कुसुमायुधजीवनम् ॥१०७४॥ जहाँ एक पैर उठा लिया जाय और झुकाया हुआ शरीर सुन्दर दीखता हो, वहाँ सज्जन लोग उसे कामदेव . का जीवन स्वरूप प्रावृत्त चारी कहते हैं । १५. उल्लाल उल्लालनं क्रमेणाज्रयोदिव्युल्लाल उदीरितः ॥१०७५॥ 1094 पैरों को क्रमशः हिलाने को उल्लाल चारी कहते हैं । १६. वेष्टन पादेनकेन यद्यन्यं वेष्टयेद्वेष्टनं तदा । एतदेव परे प्राहुलनं वृ (?) त्तवेदिनः ॥१०७६॥ 1095 यदि एक पैर से दूसरे पैर को वेष्टित कर लिया जाय तो उसे वेष्टन चारी कहते हैं। दूसरे नृत्त-पण्डित इसी को वलन चारी (भी) कहते हैं । 1093 २८१
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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