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________________ नत्याध्यायः ७. नूपुरविद्धिका संश्रित्य स्वस्तिकं पार्योस्तथा पादानयोर्यदि । 1054 यत्राठ्ठी रेचितौ सा स्यात्तदा नूपुरविद्धिका ॥१०३२॥ जब एडियों तथा पैरों के अग्रभागों के स्वस्तिक स्थानकों का सहारा लेकर दोनों पैर रेचित किये जाते हैं, तब उसे नूपुरविद्धिका चारी कहते हैं । ८. कातरा नन्द्यावर्ते स्थिताघ्रिभ्यामपसृत्या तु कातरा ॥१०३३॥ 1055 नन्द्यावर्त स्थानक में अवस्थित पैरों के अलग कर देने से कातरा चारी होती है। ९. करिहस्ता संहतस्थानकेनाख़ी स्थित्वोवी यत्र घर्षतः । पार्वाभ्यां चेत् तदा सद्भिः करिहस्ताभिधीयते ॥१०३४॥ 1056 जब संहत स्थानक में अवस्थित होकर दोनों पैर दोनों पार्यों से पृथ्वी को रगड़ते हैं, तब उसे सज्जन लोग करिहस्ता चारी कहते हैं।' १०. हरिणीत्रासिता कुञ्चिते वलितप्रान्ते तले स्वस्तिकबन्धने । अङ्घयोः कृत्वा यदोत्प्लुत्य नियते यत्र सा तदा ।। 1057 हरिणीत्रासिता चारी समवाचि विचक्षणः ॥१०३५॥ जब कंचित पैरों के प्रान्तभाग बल खाये हुए हों तथा तलवे स्वस्तिकाकार में बँधे हों और वे उछलकर एक जगह स्थिर हो जाय, तो उसे विद्वानों ने हरिणीत्रासिता चारी कहा है। ११. अर्धमण्डलिका क्षितिघृष्टौ बहिः प्राप्तौ पादौ यत्र शनैः क्रमात् । 1058 प्रावते यदा सा स्यादर्धमण्डलिका तदा ॥१०३६॥ जहाँ दोनों पैरों को पृथ्वी पर रगड़ कर बाहर करके क्रमश: धीरे-धीरे घुमाया जाता है, तब वहाँ उसे अर्घमण्डलिका चारी कहते हैं । १२. ऊरताडिता स्थित्वैकपादस्थानेन क्षितिस्थेनाघ्रिणा यदा। 1059 यत्रोरुस्ताङ्यते चारी तदासाबूरुताडिता ॥१०३७॥ २७४
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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