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________________ नत्याध्यायः उत्क्षेपश्च तथा पृष्ठोत्क्षेप एकोनविंशतिः ॥६६॥ 985 अमूराकाशिकास्ताश्च चतुष्पश्चाशदीरिताः । आकाशगत देशी चारी के उन्नीस भेद होते हैं : १. दण्डपादा, २. पुरःक्षेपा, ३. अपक्षेपा, ४. हरिणप्लुता, ५. विद्यभ्रान्ता, ६. विक्षेपा, ७. जंघावर्ता, ८. अंधिताडिता, ९. अलाता, १०. उमरी, ११. विद्धा, १२. जंघालंघनिका, १३. सूची, १४. प्रावृत, १५. उल्लाल, १६. बेष्टन, १७. उद्वेष्टन, १८. उत्क्षेप और १९. पृष्ठोत्क्षेप । उभय्योऽप्यथ सर्वास्ताः मार्गदेशीस्थिताः इमाः । 986 षडशीतिर्मताश्चार्यस्तासां लक्ष्माण्यहं ब्रुवे ॥६६॥ दोनों भूमिगत तथा आकाशगत देशी चारियों के चौवन भेदों और भूमिचारियों तथा आकाशचारियों के बत्तीस भेदों को मिला देने से चारियों के कुल छियासी भेद होते है । अब उनके लक्षण-विनियोगों का निरूपण किया जाता है। सोलह भूमिचारियाँ (१) १. समपादा अघ्रोनिरन्तरौ तुल्यनखौ कृत्वा यदि स्थितः । 987 समपादस्थानकेन समपादा मता ता ॥९७०॥ जब समपाद स्थानक के द्वारा दोनों चरणों को अव्यवहित तथा तुल्यनख करके रखा जाय (अर्थात् सटाकर इस प्रकार रखा जाय, जिससे दोनों के अग्रभाग बराबर माप में हों), तब उसे समपादा भूमिचारी कहते हैं। प्रचारयोग्यतामात्राद् यत् समाधत्त कश्चन । 988 स्थानकत्वेऽपि चारोत्वमस्यास्तत्र सतां मुदे ॥६७१॥ युक्त्यानयवमन्येषां चारीत्वं सुवचं यतः । 989 स्थानकानामतश्चिन्त्यं समाधानं बुधैरिह ॥९७२॥ समाधत्ताशोकमल्लः संगीतविदुषांवरः । 990 समपादस्थानहेतोश्चारीत्वं चलनादिह ॥९७३॥ यहां आशंका होती है कि उक्त लक्षण में स्थानक का अर्थ स्थिरता है और चारी का अर्थ चलना होता है। इन विरुद्ध धर्मों का समावेश कैसे होगा? इसका उत्तर कोई (आचार्य) सज्जनों के सन्तोषार्थ यह २६२
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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