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________________ नत्याध्यायः दूसरे मत से चालनों के पांच भेद और अधिक हैं : १. दिग्वर्ष, २. अनंगांगमोटन, ३. तोरण, ४. अनंगोहीपन और ५. मुरजकर्तरी । १. दिग्वर्ष पुरस्तात्पार्श्वयोस्तिर्यगूवं पश्चाच्च लोडितः । . करो यत्र तदुद्दिष्टं दिग्वर्षाभिधचालनम् ॥८५२॥ 864 जहाँ आगे, दोनों पावों में, तिरछे, ऊपर और पीछे हाथ चलाया जाता है, वहां दिग्वर्ष नामक चालन होता है। २. अनंगांगमोटन यदा मण्डलतो हस्तौ लुठित्वा स्कन्धदेशयोः । तद्वद् यत्र शिरःक्षत्रे नयनानन्ददायकैः । 865 लोडितौ तदनगाङ्गमोटनं कोर्तितं तदा ॥८५३॥ जब दोनों हाथ मण्डल बनाकर दोनों कन्धों पर लोटें और उसी तरह नेत्रानन्ददायक हाव-भावों से वे शिर पर लौटे तो उसे अनंगांगमोटन चालन कहते हैं । ३. तोरण पुरस्तात्स्वस्तिको भूत्वा ततो विच्युतितां गतौ । -866 पार्श्वयोर्लोडनः प्राप्य पुनः स्वस्तिकबन्धनौ ॥८५४॥ स्थित्वा शीर्षोपरि करौ ततस्तौ वियुतौ पुरः। 867 लोडितौ यत्र तत् प्रोक्तं चालकं तोरणाभिधम् ॥८५५॥ पहले दोनों हाथों को स्वस्तिकाकार बनाया जाय; तदनन्तर अलग-अलग करके दोनों पावों में हिलाया-डुलाया जाय; फिर स्वस्तिक मुद्रा में बांधकर सिर के ऊपर रख दिया जाय; तत्पश्चात् अलग-अलग करके चलाया जाय । इसी को तोरण नामक चालक (चालन) कहते हैं । ४. अनंगोद्दीपन विलोड्योरःस्थले हस्तौ क्रमादादत्तमण्डलौ । 868 विलासेनांसपर्यन्तं गत्वाभ्यन्तरमागतौ ॥८५६॥ उद्वेष्टितक्रियापूर्व यत्राधोवदनौ यदा । 869 विद्वद्भिस्तत्समादिष्टमनङ्गोद्दीपनं तदा ॥८५७॥
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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